Chapter: दूसरा अधिकार
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Summary:
सही गलत बतायें -
(Q.1)घाति कर्म के निमित्त से जीव का घात होता है।
Ans- (गलत)
(Q.2) घात का मतलब जीव की पूर्ण शक्ति पर्याय मे प्रगट नही हो पाना है।
Ans- (सही)
(Q.3) स्वभाव का पूर्ण घात होने से द्रव्य का ही घात हो जायेगा।
Ans- (सही)
(Q.4) घातिया कर्म और जीव का कर्ता कर्म संबंध है।
Ans- (गलत)।
(Q.5) सारे कर्मों का संबंध जीव के साथ अनादि से है।
Ans- (सही)
(Q.6) चारित्र मोहनीय के जितने कर्म नष्ट हुए उसके अनुपात में जीव मे समता आती है।
Ans- (सही)
रिक्त स्थान भरो -
(Q.1) घातिया कर्मो का जीव के साथ____
संबंध है।
Ans- (निमित नैमित्तिक)
(Q.2) दर्शन मोहनीय कर्म जीव मे ____का घात कर ___उत्पन्न करता है।
Ans- (सम्यक्त्व , मिथ्या श्रद्धान)
(Q.3) चारित्र मोहनीय कर्म जीव मे __ __ स्वभाव का घात कर कषाय रूप___उत्पन्न करता है।
Ans- (समता, मिध्या चारित्र)
(Q.4) मोहनीय कर्म के उदय से जीव में श्रद्धा चारित्र गुणका ______होता है।
Ans- (विपरीत परिणमन)
(Q.5) कर्मो में सबसे खराब ____कर्म है। और उनका राजा ____कर्म है।
Ans- (घातिया, मोहनीय)
सही विकल्प चुनें -
(Q.1) ज्ञानावरण दर्शनावरण और अंतराय कर्म के निमित्त से जीव मे ज्ञान दर्शन वा शक्ति की व्यक्तता
Ans-
(1) पूर्ण होती है
(2) किंचित होती है
(3) विपरीत होती है
(4) बिल्कुल नही होती है
उत्तर- (2) किंचित होती है।
(Q.2) मोहनीय कर्म के निमित्त से व्यक्तता होती है
Ans-
(1) विपरीत श्रद्धान, चारित्र
(2) किंचित सम्यक्त्व
(3) किंचित चारित्र
(4) चारित्र बिल्कुल व्यक्त नही होता है।
उत्तर (1) विपरीत श्रद्धान चारित्र
(Q.3) अंतराय कर्म के छयोपशम से
Ans-
(1) दीक्षा लेने रूप पूर्ण सामर्थ्य व्यक्त होती है।
(2) जीव की शक्ति का पूर्ण नाश होता है।
(3) किंचित शक्ति व्यक्त होती है
(4) कुछ भी नही
उत्तर = (3) किंचित शक्ति व्यक्त होती है।
Short answer type question-
७ = मिथ्या श्रद्धान से क्या तात्पर्य है?
श्रद्वान = मानना - जैसे पदार्थ हैं उनको जैसे है वैसा मानना।
मिथ्या श्रद्धान विपरीत मानना, कुछ का कुछ मानना ! शुद्ध जीव में त्रैकालिक रूप से मात्र जानने की शक्तिहै ।उसको न मानकर तात्कालिक शक्ति जैसे बोलने की, दोड़ने की, खाने की, घूमने की आदि को जीव मानना । शरीर, संयोगों के साथ संबंध बनाकर एक मानना ।
Q _सम्यक चारित्र से क्या तात्पर्य है
उत्तर -स्वरूप लीनता, स्थिरता, न अच्छा लगना, न बुरा लगना, कषाय नही होना, रागद्वेष नही होना ।
७ - ज्ञानावरणादि ३ कर्म और मोहनीय कर्म में अंतर बताएँ?
उत्तर _ज्ञानावरणादि 3 कर्म
(1) स्वभाव को ढकने का कार्य करते हैं। पूर्ण रूप से स्वभाव को प्रगट नहीं होने देते हैं।
(2) कमजोरी है।
(3) 100%कार्य कभी नही करते।
जीव की शक्ति कुछ अंश में जरूर प्रगट रहती है।
मोहनीय कर्म _
(१) इसके उदय से जीव की शक्ति विपरीत होती है।(2) विकृति / बीमारी है । 3
3)१००% काम करता है ।। बल्कि (-ve) मे
काम करके जीव की शक्ति को विपरीत कर देते हैं।
मोहनीय कर्म
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