Tuesday, November 4, 2008

11/3/08 chapter 2, मोहनीय कर्मोदयजन्य अवस्था, पेज 37

मन:पर्ययज्ञान के भेद:
१.ऋजुमति ज्ञान:
-दुसरे के मन मे स्थित होने पर भी जो सरलतया मन, वचन, काय के द्वारा किया गया हो, ऎसे पदार्थ को विषय करने वाले ज्ञान को ऋजुमति ज्ञान कहते है ।
-वर्तमान में जिसका चिन्तवन किया जा रहा है ऎसे त्रिकाल विषयक रुपी पदार्थ को ऋजुमति ज्ञान जानता है ।
अर्थात वर्तमान में जो भूत, भविष्य तथा वर्तमान के बारे में जो सरल रुपी पदर्थो का विचार ऋजुमति ज्ञान का विषय है।
२. विपुलमति ज्ञान :
दुसरे के मन में स्थित भूत, भविष्य, वर्तमान में जिसका चिन्तवन किया जा रहा हो ऎसे सरल अथवा कुटिल विषयों को विषय करने वाले ज्ञान को विपुलमति ज्ञान कहते है ।

* अवधि ज्ञान व मति ज्ञान में अंतर:

प्रश्न: अवधिज्ञान के बाद मन:पर्यय ज्ञान को क्यों रखा?
उत्तर: - मन का विषय ज्याद सूक्ष्म है ।
-मन:पर्यय ज्ञान मोक्ष अ केवल ज्ञान के समीप है, इसलिये उसे अवधि ज्ञान के बाद रखा।

प्रश्न: बुढापे में मति,श्रुत ज्ञान कम क्यों हो जाता है?
उत्तर:- पूर्व में बहुत संक्लेश परिणाम करने के कारण कषाय की तीव्रता से क्षयोपशम कम हो सकता है।
- शरीर नामकर्म के उदय से।
- इन्द्रियों में शिथिलता आ जाने के कारण।

प्रश्न: नींद में ज्ञान उत्पन्न होता हुआ मालुम पढता है, किन्तु दर्शन तो होता नहिं है क्योंकि निद्रा का उदय चल रहा है और निद्रा सर्वघाति है. सो ज्ञान कैसे होता है?
उत्तर: - पहले उस वस्तु का दर्शन हो चुका है।
- निद्रा प्रक्रति का उदय maximum अन्तर्मुहुर्त में होता ही होता है, उसके बाद उसमें gap होगा ही होगा । तो जब निद्रा प्रक्रति का उदय नहीं है तब दर्शनोयोग हो जायेगा।
इसी प्रकार जब हम जागते रहते है तब निद्रा का उदय सूक्ष्मरुप है, व्यक्त नहीं है इसीलिए दिखाइ नहीं देता।

पेज ३७: अब इस जीव के मोहनीय कर्मोदयजन्य अवस्था:

* दर्शन मोह के उदय से मिथ्यात्ब भाव होता है।
*चारित्र मोह के उदय से कषाय भाव होता है।

दर्शनमोह रुप जीव की अवस्था:

*आत्मा अमूर्तिक प्रदेशों का पुंज है, वह science आदि के द्वारा नहिं जाना जा सकता, प्रसिद्ध ज्ञानादि गुणों का धारी है, अनादिनिधन है, वह स्व है ऎसा प्रत्येक जीव का स्वरुप है।

* जो मूर्तिक है, पुदगल है ये शरीर आदि तथा उसके संयोग से प्राप्त पदार्थ, पर्यायें, ये ज्ञानदि से रहित है, पर है।

* सो इन पर पदर्थों के संयोग से जो पर्यायें उत्पन्न्न हो रही है उनमें ये मैं ही हूं, जो न तो जीव है न तो पुदगल है, उससे जो mix state बनी है उसमें अहंबुद्धी करता है, स्व पर का भेद नहीं कर पाता है ।
सो इस प्रकार यह जीव विपरीत श्रद्धान रुप प्रवर्तन करता है।

2 comments:

Vikas said...

Thanks for posting and covering extra question.

One correction: This question प्रश्न: नींद में ज्ञान तो उत्पन्न होता नहीं, किन्तु दर्शन तो होता है, कैसे? should be this - प्रश्न: नींद में ज्ञान उत्पन्न होता हुआ मालुम पढता है, किन्तु दर्शन तो होता नहिं है क्योंकि निद्रा का उदय चल रहा है और निद्रा सर्वघाति है. सो ज्ञान कैसे होता है.

Question for you all: If मन:पर्ययज्ञान मन से उत्पन्न होता है, तो फिर उसके वचन, काय भेद क्यों और कैसे बन सकते है ?

sarika said...

Done the correction as u suggested.