दर्शन मोहनीय की ३ प्रकृतियां:
१. मिथ्यात्व - सर्वघाती, १ ला गुणस्थान ।
२. सम्यक मिथ्यात्व (मिऋ प्रकृति) - सर्वघाती, ३ रा गुणस्थान, केवल १ अन्तर मुहुर्त की अवस्था होत्ती है ।
३. सम्यक अवस्था - देश घाती, ४ - ७ वें गुणस्थान में होती है, यह सम्यकत्व मे दोश लगाती है, लेकिन उससे सम्यकत्व बाधित नहीं होता है ।
चारित्र मोह रुप जीव की अवस्था
कषाय
- सम्यकत्व, देश चारित्र, सकल चारित्र को होने नहीं देती है ।
- आत्मा के स्वभाव का घात करती है ।
- राग द्वेष ये कषाय रुप है ।
- आत्मा को कसे अर्थात दुख दे वह कषाय है ।
- पर पदार्थों को अपना मानना ही कषाय का मुल कारण है ।
- एक समय मे एक ही कषाय उतपन्न होती है ।
क्रोध
- क्रोध का उदय होने पर, पर पदार्थों में अनिष्ट पना मानकर उनका बुरा चाहता है ।
- क्रोध का मूल कारण - जब अपने अनुसार काम न हो, अन्य परिणमन हो तब क्रोध आता है ।
मान
- मान घमंड को कहते है ।
- पर पदार्थों में अनिष्टपना मान कर उसे नीचा करना चाहता है, स्वयं ऊंचा होना चाहता है ।
Thursday, November 6, 2008
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1 comment:
बहुत बढिया! आभार।
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