Monday, November 10, 2008

19th Nov - चारित्र मोहनीय व अंतराय कर्मोदय जन्य अवस्था - Cont

कषाय [क्रोध, मान, माया, लोभ] धर्म के क्षेत्र में भी पायी जाती है ।
कुछ उदाहरण -
क्रोध - धार्मिक विवादॊं में उलझना, मानवश क्रोध ।
मान - मंदिर में सभी मुझे धार्मिक जानें इस कारण से पूजा / ध्यान / स्वाध्याय / दान आदि करना ।
माया - पूजा / स्वाध्याय में दूसरों को दिखाने के लिये उत्साह दिखाना।
लोभ - धार्मिक क्रीया के पीछे सांसारिक लोभ ।

अंतराय कर्म - जिस कर्म के निमित्त से जीव जैसा चाहे वैसा ना हो । अंतराय कर्म ईच्छित वस्तु की प्राप्ति में विघ्न डालता है ।
भेद - १) दान-अंतराय २) लाभ-अंतराय ३) भोग-अंतराय ४) उपभोग-अंतराय ५) वीर्य-अंतराय

वीर्यांतराय कर्म के उदय वश जीव की ज्ञान-दर्शन आदि अनंत शक्तियां पूर्णत: प्रकट नहीं हो पातीं।

अंतराय कर्म का क्षयोपशम या क्षय होता है ।

1 comment:

Vikas said...

bahut badiya!
One should think about our kashay related to dharm kshetra as they due major harm than lokik kashay.