Thursday, October 30, 2008

Notes from October 29th, 2008 , page # 36-37

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-> ज्ञानावरण और दर्शानावरण का उदय तो ज्ञान और दर्शन के अंश का अभाव करता हे।
-> उनका (ज्ञानावरण और दर्शानावरण ) क्षयोपषम से ज्ञान और दर्शन के अंश प्रगत होते हे।
-> इस तरफ़ ज्ञान और दर्शन की शक्ति प्रगटता ज्ञानावरण और दर्शानावरण के क्षयोपषम के सापेक्ष हे।

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-> क्षयोपषम से शक्ति प्रगट होने पर भी उस शक्ति का संपूर्ण १००% उपयोग/सदभाव एक समय मे नही होगा।
-> एक समय मे सिर्फ़ एक विषय या तो दीखता हे या जाना जाता हे। यानी ग्यानोपयोग होगा तब दर्शानोपयोग नही होगा। दर्शानोपयोग होगा तब ग्यानोपयोग नही होगा।
-> अरे ग्यानोपयोग होगा तो उसमे भी एक ही भेद मे उपयोग होगा। द्रष्टान्त: मति ज्ञान हो तो श्रुत ज्ञान नही होगा।
-> उस एक भेद का भी एक ही विषय जान पायेगा। रस को जानेगा तो स्पर्श को नही जानेगा।
-> एक विषय के भी एक ही अंग को जानेगा। उष्ण स्पर्श को जानेगा तब रक्षा आदि स्पर्श को नही जानता।

* प्रश्न:
-> एसा भास् क्यो होता हे की युगपत कई सारे विषयो का जानना और देखना हो रहा हे।
-> ग्येय के बदलने की चंचलता काफ़ी अधिक मात्रा मे पायी जाती हे, इस लिए परिणाम की सिध्रता से एसा मान लेता हे।

* प्रश्न:
-> अगर एक समय मे एक ही बिषय को जान या देख सकते हे तो उतना ही क्षयोपषम हे एसा क्यों नही कहते?
-> व्यवहार मे भी शक्ति होने पर जरुरी नही हे की उस शक्ति का उपयोग हो ही। इसी तरफ़ ज्ञान या दर्शन की शक्ति पाये जाने पर भी वर्तमान पर्याय मे उस का उपयोग न भी हो।

* प्रश्न:
-> एसा कहते हे की मति ज्ञान आदि की शक्ति ज्ञानावरण के क्षयोपषम से ही पाई जाती हे तो आत्मा मे तो केवल ज्ञान की भी शक्ति पायी जाती हे, वोह कहा क्षयोपषम से होती हे?
-> केवल ज्ञान तो आत्मा मे त्रैकालिक शक्ति के स्वरुप मे हे और वोह तो द्रव्य अपेक्षा हे। जब की ज्ञानावरण के क्षयोपषम से जो भी मति ज्ञान आदि हे वोह तो आत्मा मे वर्तमान पर्याय मे सामर्थ्य स्वरुप शक्ति के रूप मे हे।
-> अगर संसारी छद्मस्थ जीव पुरुषार्थ करे तो उपयोग स्थिर करने पर वर्तमान पर्याय मे व्यक्त मति ज्ञान को प्रगट कर सकेगा। जब की केवल ज्ञान तो छद्मस्थ जीव मे अव्यक्त हे तो फिर प्रगट कर ही नही शकता, पहले तो पुरुषार्थ करके उसे ज्ञानावरण के आवरण को दूर करना पड़ेगा तब जाके केवलज्ञान व्यक्त होगा।

* प्रश्न:
-> क्षयोपषम होने पर भी अगर बाह्य इन्द्रिया का निमित्त ना मिले तो देखना या जानना नही होगा तो कर्म की ही निमित्तता कहा रही?
-> यह कर्म के क्षयोपषम का ही विशेष हे यानी कर्म का क्षयोपषम ही इस प्रकार का हे की उसे बाह्य द्रव्यों का निमित्त मिलेगा तो ही देखेगा या जानेगा।
-> द्रष्टान्त: मनुष्य को अन्धकार मे नही दिखेगा जब की उल्लू को उसी अन्धकार मे ही दिखेगा - सो यह क्षयोपषम का ही विशेष हे।

1 comment:

Vikas said...

बहुत बढिया!