अनुयोग का प्रयोजन किया है चारो अनुयोग मैं एक साध्य की सिद्धि मैं पूरक हैं
Question- अनुयोगों मैं विरोध रूप से कभी कथन मिलता है ? Ans- उसका उत्तर है की काल दोष के कारन कही-कही विरोध कथन हुए है
प्रत्यक्ष ज्ञान- अवधि , मन: परयः ज्ञान, केवल ज्ञान (और बहु श्रुत का ज्ञान इस काल मैं नही पाए जाते)
परोक्ष ज्ञान- मति ज्ञान और श्रुत ज्ञान (ही इस काल पाया जाता है)
जैन मत मैं अन्यथा बात मिलाने वाले कषाय (भय, लज्जा, क्रोध, मान) प्राणी भी इस काल में कदाचित् होते हैं. क्या करना- जो बड़े आचार्य आगम परम्परा को मानते है उसे स्वीकार करना. अपना प्रयोजन तक विश्लेषण ही करना, ज्यादा नही करना. 7 तत्वों का / देव-गुरु-शास्त्र का / पदार्थों का विरोध रूप वर्णन करे, तो विश्लेषण करना चाहिए. सम्यक दर्शन मैं संशय बिभ्रम, अनध्यवसाय, विपरीत ज्ञान न हो यह जरूरी है. यह बातें कि - भगवान् की आयु कितनी थी, एक इन्द्रिय जीव को सासादन गुणस्थान जिसमे 2 रुप बाते मिल जाती है, तो दोनो को हि मान्य कर लेना, क्योंकी इससे मोक्ष मार्ग मैं बाधा नही पहुचती है.
प्रयोजन अगर वीतरागता को पोषण करता है वही मान्य है, इसलिए अन्य मत का कथन सदोष होता है. कियोकी वह वीतरागता को पोषण नही करता इसलिए मान्य नही है
अन्य मत और वीतरागता:
Question -वीतरागी bhagwaan को वीतराग भाव होता है तो क्यों समवशरण आदी बिभूति होती है?
Ans- भगवान् की इच्छा से बिभूति नही ही बल्कि देवकृत है वीतराग भगवान् तो समवशरण मैं भी अलिप्त है. पर अन्य मत मैं भगवान् बिभूति से लिप्त दिखाई देते है परस्पर विरोध दिखाई देते है without proof कथन भी मिलते है जिन मत मैं जो भी कथन है वह सब निर्दोष है
इसलिए वही मान्य है
Question - पहले किस अनुयोग का अभ्यास करे- Realize yourself
आचार्य बीरसेन स्वामी का लेख धवाला जी मैं (insight) - महावीर स्वामी की आयु की 72 बर्ष की थी या भीर ७१.३ बर्ष की थी - इनमे से किसे एक कथन को मान लेने मैं कोई बाधा नही होती है
Tuesday, October 14, 2008
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