Wednesday, December 31, 2008

मोह / इंद्रिय विषयों से दुख

Class Date: 30th Dec 08
Chapter: 3
Page#: 50
Paragraph # 2:
Recorded version:
Summary:
.... सो निजभाव सदा सुखद करिहै सत्ता नाश ।
मंगला-चरण में सुख जीव के स्व्भाव में बताया । मिथ्यात्व रुप अवस्था, इंद्रिय विषयों में सुख मानने की अवस्था दुख का कारण है ।
इंद्रिय विषय रुप दुख/सुखाभास के बारे में चार बात दोहराते हैं -
अ) बाधा सहित
ब) विनाशीक
स) पराधीन
द) बंध के कारण
ए) विषम
बंध का कारण तो स्पष्ट भासित नहीं होता है परन्तु और चार बाते तो स्पष्ट भासित होती हैं। अनुभव करने में आती हैं।
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प्रश्‍न - आपने सभी कर्म के उदय दुखरूप बताये लेकिन रति कर्म(उसकी परिभाषा के अनुसार) का उदय तो सुख रूप होता होगा?
उत्तर - मोह का उदय दुखरूप ही है, मिथ्यात्व,कषाय, रति अरति सभी दुख रूप ही है।
दर्शन मोहनीय से दुख और उससे निवृत्ति:-
दर्शन मोह के उदय से प्रयोजन भूत तत्वों में विपरीत श्रद्धान होता है। प्रयोजन भूत तत्व अर्थात जिससे जीव का बिगाड सुधार होता है, जीव के सच्चे सुख का प्रयोजन होता है।
मिथ्यात्व के उदय से स्व और पर के श्रद्धान में विपरीतता पाई जाती है । यह विपरीतता पहले चार प्रकार से बताई थी ।
अ) अपना ज्ञान का परिणमन [मैं ज्ञान करता हूं]
ब) रागादि विभाव भाव [मुझे क्रोध आया]
स) शरीर का परिणमन [मुझे बुखार आया]
द) बाह्य संयोग [मेरे पुत्र / घर / संपदा]
इन चारों ’मैं’ में एक-मेक जानने रुप अवस्था मिथयात्व से बनती है ।
जैसे - पागल [मिथ्यात्वी] को किसी [कर्मों] ने कपडे [शरीर] पहनाए । पहनाने वाला [कर्म] कभी लाल-पीले-छोटे-बडे [शरीर की अवस्था - मोटा, छोटा, काला, गोरा] कपडे पहनाता है । पहनाने वाला तो कोई और, मगर पागल उस कपडे को अपना मानता है । कभी कपडे अपनी इच्छा के अनुरुप लगे तो खुश होता है, नहीं तो बहुत दुखी होता है । यह नहीं सोचता कि यह तो पहनाने वाले के आधीन है । यही विपरीत श्रद्धान है । अनेक उपाय करने के बाद भी संयोग हमारी इच्छा के अनुरुप नहीं होते । संबंध इतना करीब का लगता है कि इसमें विपरीतता आसानी से समझ नहीं आती । आचार्य कहते है कि लक्षण, नय, तर्क से इस विपरितता को समझा जा सकता है ।

1 comment:

Vikas said...

Nicely posted in short. I have couple comments:

बंध का कारण तो स्पष्ट भासित नहीं होता है परन्तु और चार बाते तो स्पष्ट भासित होती हैं।

Comment:यहाँ ऐसा लग रहा है जैसे आचार्य कह रहे है की बंध का कारण स्पष्ट नही है, जबकि वैसा नही है. यह तो हमारे सोचने के लिए है, If you can add something similar to - 'यहाँ एक बात विचारनीय है की भले ही इन्द्रिय-विषय बंध का कारण कैसे है, यह जीव को स्पष्ट नही हो, लेकिन बाकी बातें तो स्पष्ट देखने में आती है..'


..संबंध इतना करीब का लगता है कि..
Comment: ..संबंध इतना करीब का है कि..