Tuesday, March 11, 2008

Class Notes on 3/10/2008

जय जिनेन्द्र,

अरिहंतों का स्वरूप :-
-> अनंत चतुष्टय( अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत सुख, अनंत वीर्य) के धारी हैं।
-> अनंत वीर्य द्वारा समस्त जीवादि द्रव्यों को अनंत गुण पर्याय सहित युगपत जानने की सामर्थ्य धारण करते है ।
-> अनंत सुख निराकुल है,और अनंत दो तरह से है...
१ . समय के अनुसार अर्थात अनंत काल तक सुख रहेगा ,
२. अतीन्द्रिय सुख है अर्थात इंद्रिय रहित सुख है।
-> अरिहंत 18 दोषों से रहित हैं:- भूख, प्यास, बीमारी, बुढापा, जन्म, मृत्यु, मोह, राग, द्वेष, रति, अरति, भय, चिंता , गर्व, विस्मय(अचरज),निद्रा, खेद(शोक), स्वेद(पसीना)
-> अरिहंत को देवाधिदेव कहा है अर्थात वो देवों के भी अधिपति हैं।
-> अरिहंत आयुध(अस्त्र-शस्त्र), अंबरादिक(वस्त्रादिक), अंगविकारादिक(काम, क्रोध, लोभ आदि) से रहित हैं।
-> परमऔदारिक शरीर है:-
औदारिक शरीर मनुष्य और तिर्यंचों के होता है, जो स्थूल है। अरिहंतों का शरीर परम औदारिक २ तरह से है :- धातु उपधातु से रहित है, और निगोदिया(सूक्ष्म अवगाहनी जीव) जीवों से रहित है।
-> वचनों से धर्म तीर्थ प्रवर्तता है, तीर्थ अर्थात तिरा जाये,
अरिहंत के वचनों के आश्रय से संसार भव से पार हो जाय।
-> जीवों का कल्याण होता है अर्थात सभी जीवों को सुख की प्राप्ति होती है।
-> अनेक प्रकार के अतिशय व वैभव पाया जाता है , उनके 34 अतिशय कहे है उदाहरणार्थ:-
नख ,केश नहीं बढना
अष्ट प्रातिहार्य(भामन्डल,सिंहासन,चंवर ढुरना,तीन छत्र, दुंदुभि, पुष्प वर्षा,वाणी खिरना , अशोक वृक्ष)
100 योजन तक सुभिक्ष (शांति) रहना
चतुर्मुख दिखना
परछाई नही दिखना
-> देव व गणधर जिनकी अपने हित के लिये (सुख प्राप्ति के लिये) सेवा करते हैं, यहां देव अर्थात रागी जीवों में सर्वोत्कृष्ट और गणधर अर्थात वीतरागी जीवों में सर्वोत्कृष्ट सुख प्राप्ति के लिये उनकी सेवा करते है।
-> अरिहंत देव सर्व प्रकार से पूजने योग्य हैं ,सर्व प्रकार अर्थात मन(गुणों का स्मरण) , वचन(भक्ति पूजा आदि द्वारा), काय(कलश, पंचनमस्कार आदि), कृत, कारित, अनुमोदना द्वारा पूजने योग्य हैं।


Sunaina Jain

2 comments:

Vikas said...

बहुत बढ़िया :)

Anonymous said...

Very well written, thanks for summarizing.