Monday, March 17, 2008

Class Notes of Class 17th March

जय जिनेन्द्र,

आचार्य उपाध्याय और साधु के सामान्य स्वरूप का अवलोकन

->जो विरागी होकर अर्थात संसार शरीर और भोगों से विरक्त होकर
->समस्त परिग्रह का त्याग करके =
-14 अंतरंग परिग्रह (मिथ्यात्व, 4कषाय{क्रोध ,मान ,माया लोभ} , 9 नोकषाय {हास्य,रति,अरति,शोक, भय, जुगुप्सा, पुरुष वेद,स्त्री वेद, नपुंसक वेद})
-10 बहिरंग परिग्रह ( धन,धान्य,दास,दासी,कुप्य(छोटे बर्तन),भांड(बडे बर्तन),सोना,चांदी,क्षेत्र,वास्तु)
-पांच पापों का त्याग (हिंसा, झूंठ, चोरी, कुशील, परिग्रह)
->शुद्धोपयोगरूप अर्थात अपनी आत्मा मे ही लीनता
->परद्रव्य में अहंबुद्धि धारण नहीं करते और परभावों मे ममत्व नहीं करते
बुद्धि २ प्रकार की:-
1.अहं बुद्धि अर्थात द्रव्यपना कहा है जैसे मैं क्या हूं (मैं लडका, मैं लडकी, मैं बेटा, मैं बेटी आदि)
2.मम बुद्धि अर्थात द्रव्य की विशेषता रूप जैसे मेरा क्या है ( मेरा घर, मेरा मकान आदि)
->ये जो परद्रव्य हैं उनको जानते हैं लेकिन उनको अच्छा बुरा मानकर उनमें राग द्वेष नहीं करते
->शरीर की अनेक अवस्थाये होती है जैसे (रॊगी, कृश, वृद्ध.. ),बाह्य नाना निमित्त बनते है जैसे(सर्दी, गर्मी)
परंतु उनमे कुछ भी सुख दुख नहीं मानते और उदासीन होकर अर्थात अंतरंग में राग द्वेष से रहित है
और निश्चल वृत्ति को धारण करते हैं अर्थात बाह्य में शांत रूप से बैठते हैं। अपना उपयोग अपनी आत्मा में ही स्थिर रखते हैं।


विशाल

1 comment:

Vikas said...

Thanks for summarizing. One question about अहं और मम्‍ बुद्धि.
आपने लिखा:
"1.अहं बुद्धि अर्थात द्रव्यपना कहा है जैसे मैं क्या हूं (मैं लडका, मैं लडकी, मैं बेटा, मैं बेटी आदि)
2.मम बुद्धि अर्थात द्रव्य की विशेषता रूप जैसे मेरा क्या है ( मेरा घर, मेरा मकान आदि)"

Question here:
तो क्या मम्‍ बुद्धि में द्रव्यपना नहीं आ सकता? OR क्या अहं बुद्धि में द्रव्य की विशेषता नहिं आ सकती?