Thursday, March 27, 2008

Notes for class held on March 26, 2008

उपाध्याय का स्वरूप पढ़ा जो श्रुत का अभ्यास करते है और कराते है .

श्रुत ज्ञान के भेद:

अंगप्रविष्ट - This refers to the agam granths whose knowledge was orally passed on from Gandhara bhagwaan to their disciples. (Not sure if these were written down at any point of time).

अंगबाह्य - This refers to the scriptures that were created by Acharyas/Upadhyays based on the knowledge gained from अंगप्रविष्ट agams.



अंगप्रविष्ट के भेद
अंगDescription
आचारंगDescribes conduct of Muni
सूत्रकृत - सुत्रांगContains information about सम्पूर्ण वस्तु (need clarificaton from Vikas what exactly this covers - is it Dravya and Tatva?) in the form of Sutras.
स्थानांग

Contains information about the स्थान of 6 dravyas. For example, a jeev dravya can be described in different ways as:

2nd sthaan: Sansari and Mukt Jeev/Tras and Sthavar Jeev

3rd sthaan: (not sure - Vikas, please clarify)

4th sthaan: Manushya, Narki, Dev, Tiryanch

समवायांग

Describes similarity between different entities for each dravya. Example:

similarity between sansari jeev, similarity between Siddha Bhagwaan.

प्रश्नव्याकरणContains answers to the 60000 questions asked by Gandhar Bhagwaan.
ज्ञातृधर्मकथा - नाथधर्मकथाContains information about the swaroop of Jeev, Padarth (pudgal?), etc.
उपासकाध्यायनांगUpasak means a Shravak. It contains information about the conduct of a Shravak, 11 Pratima, kriyas that a Shravak should do such as Pooja, Daan, etc.
अन्तःकृतदशांग अंगDuring the time of each Tirthankar, there are 4 types of Upsaarg (dev krut, manushya krut, prakruti krut and tiryanch krut) on 10 Kevalis in their muni avastha. This अंग gives an account of them in the form of stories.
अनुत्तरौपादिकदशांग अंगThis is similar to अन्तःकृतदशांग अंग except that the 10 munis do not attain keval gyan, but instead take birth in Annutar Viman.
व्याख्याप्रज्ञप्तिContains information about birth/death, happiness/sorrow, etc in each आरा of the time cycle.
विपाकसूत्र Gives an account of the fructification of karmas (कर्म उदय, फल, अनुभाग आदि का कथन)
द्रष्टिवादThis has 5 subcategories: परिक्रम, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत, चुलिका

द्रष्टिवाद के भेद
भेदDescription
परिकर्मइसके 5 भेद नीचे मुजब जानना
सूत्रमिथ्यादर्शन के भेद का वर्णन
प्रथमानुयोगपुराण पुरुषो का जीवन वर्णन
पूर्वगतइसके 14 भेद नीचे मुजब जानना
चुलिकामंत्र तंत्र का वर्णन; इसके 5 भेद नीचे मुजब जानना



परिकर्म के भेद
भेदDescription
चंद्रप्रज्ञप्तिचंद्र की गति, रहने वाले जीव, दिशा, विमान, देव ऋद्धि आदि का वर्णन
सूर्यप्रज्ञप्तिसूर्य की गति, रहने वाले जीव, दिशा, विमान, देव ऋद्धि आदि का वर्णन
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिजम्बुद्वीप का वर्णन
द्वीपसागरप्रज्ञप्तिद्वीप समुद्र का वर्णन
व्याख्याप्रज्ञप्ति(Vikas will clarify this)



पूर्व के भेद
पूर्वDescription (homework)
उत्पाद-पूर्व
आग्रायणीय
वीर्यानुवाद
अस्ति-नास्ति प्रवाद
ज्ञान-प्रवाद
सत्य-प्रवाद
आत्म-प्रवाद
कर्म-प्रवाद
प्रत्याख्यान-पूर्व
विद्यानुवाद
कल्याणवाद
प्राणानुवाद
क्रियाविशाल
त्रिलोक-बिन्दु सार


चुलिका के भेद
चुलिकाDescription
जलगता जल मे चला जाय ऐसे मंत्र, तंत्र का वर्णन
स्थलगताज़मीन पे चला जाय ऐसे मंत्र, तंत्र का वर्णन
मायागतामायाजाल की विक्रिया करी जा शके ऐसे मंत्र, तंत्र का वर्णन
रूपगतारूप बदला जा शके ऐसे मंत्र, तंत्र का वर्णन
आकाशगताआकाश मे गमन किया जा शके ऐसे मंत्र, तंत्र का वर्णन


साधू का स्वरूप

  • मुनिपद को धारण किए हुए होते है
  • आत्मास्वाभाव को साधते है
  • उपयोग चंचल न बने और पर द्रव्य की इष्ट अनिष्ट बुद्धि मे न लगे इसके लिए पुरुषार्थ करते है
  • शुभ क्रिया मे प्रवर्तते है जैसे तप, भक्ति, वंदना आदि

साधू की साधना तो आत्महित के लिए ही होती है, जबकि आचार्य और उपाध्याय आत्महित की इलावा धर्मं उपदेश आदि द्वारा परोपकार के कार्य भी करते है

साधू के २८ मूलगुण

  • ५ महाव्रत (सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, अस्तेय - अचौर्य)
  • ५ समिति (इर्या, भाषा, एषणा, आदान निक्षेपण, प्रतिस्थापना)
  • ५ इन्द्रियजय (स्पर्श, रस, गंध, चक्षु, कर्ण) - ५ इंदिर्य के विषियो मे राग द्वेष नही करते है
  • ६ आवश्यक - सामायिक, वंदन, स्तुति, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, कायोत्सर्ग
  • ७ शेष मूलगुण - नग्नता (अचेलकत्व), अस्नान, अदंतधोवन, केशलोच, एक बार आहार, खड़े खड़े आहार का ग्रहण, भूमि शयन

-Kunal Shah

Wednesday, March 26, 2008

Class notes from 3/25/08

Upadhyay ka swarup

- Upadhyay ek padvi hey jo jain sadhu ko milati hey. They have the knowledge of many many Jain shashtra (not necessarily 11 ang and 14 purvas) and therefore wo sangh me padhate he aur padhate bhi hey.

- They understand what the purpose of all Jain scriptures is (which is to ignite vitraagta and show mukti marg through aatma sthirta) and because they understand that, they concentrate on their aatma shuddhi.

- Khabhi mand kashay ka uday hone se, they can’t concentrate on aatma dhyan, they will go back to the scriptures and study them again and again.. so they have deeper understanding of the scriptures.

- jo jeev moksh pane ke bahut kareeb hain unhe samipvarti kehte hain

Please review and let me know if we need any changes.

Thanks,
Harshil

Tuesday, March 25, 2008

Class Notes 03/24

Acharyonka swarup
- Compared to other members of the sangha they have more 'Samyak Dharshan', 'Samyak Gyan' & 'Samyak charitra'and better understanding of the same which makes them the leader of the
sangha.
- Most of the time they are occupied in 'Nirvikalpa Swaroopaacharn'.
- Owing to rise in mild 'Rag' and sympathetic feeling he preaches those who are curious for
religion and gives "Deeksha" to those who are interested and ready for Deeksha.
- He purifies,those who admits their faults, by the process of "Prayaschit".
- New acharyas are appointed by existing acharya of the sangha who plans to move on to next
level by taking "Samadhi".
- Acharyas have the final say in the sangha and everyone obeys and respects him.
- No one from the sangha will start new sangha.
We bow to such a leader of the sangha who follows the path of jainism and spiritual conduct
described above.

Wednesday, March 19, 2008

Class 03-19-08

Recorded class is at http://cid-52d749a4f28f4c05.skydrive.live.com/self.aspx/Public/MMP%20class/03-19-08_%e0%a4%86%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%af%20%e0%a4%95%e0%a4%be%20%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%b0%e0%a5%81%e0%a4%aa.WAV

Let me know if you have questions.

thanks
Vikas

Class Notes from 03/18/2008 ( क्लास नोट्स फ्रॉम ०३/१८/२००८)

*** अहम् बुद्धी और मम बुद्धी पर होम वर्क : रोज की क्रियाओं मे कहा अहम् बुद्धी और कहा मम बुद्धी का प्रयोग होता हे उसके बारे मे सोचे.
आचार्य, उपाध्याय, साधू का सामान्य स्वरूप : (continue…)
* कदाचित् (sometimes) शुभ उपयोग भी होते हे:
--शुभ उपयोग बाह्य साधन हे शुद्ध उपयोग का
--असमर्थ कारण हे क्यों की कारण होने पर कार्य हो, ऐसा जरुरी नही हे
--मुनी को अशुभ उपयोग भी होते हे ( अशुभ उपयोग होने से गुणस्थानक नीचे नही जाता )
--खाना खाने का भाव = निम्न कक्षा के शुभ उपयोग + अशुभ उपयोग
--इसी तरफ़ उच्च कशा के शुभ उपयोग और शुद्ध उपयोग भी साथ में हो सकते हे
* मंद राग को हेय जानकर दूर करना चाहते है
--हेय यानी जो छोड़ने लायक है, उपादेय यानी जो ग्रहण करने लायक है
--मंद राग, अनुराग होते हे लेकिन उससे दूर हटने का प्रयत्न (कोशिश) करते हे
--जरुरत होने पर प्रायश्चित (prayaschit) भी करते है
* तीव्र कषाय का अभाव है
-- अनंतानुबन्धी, अप्रत्याखानी और प्रत्याखानी कषाय का अभाव है
* सौम्य मुद्रा धारी है
-- शांत पानी की तरफ़ सौम्य चेहरा हे जिसे देख के मारने आया हुआ सिंह भी शांत हो जाए
-- अंतरंग मे राग/द्वेष नही होने से शरीर या मुख पर कोई विकार नही है
* विक्रियाओ से रहीत है
--शरीर की विशेष क्रियायें जेसे की श्रृंगार करना, नहाना-धोना आदी नही करते
--केश लोंच – शरीर का ममत्व नही होना
* वनखंडादी मे वास
--जहा भी रहे कोई प्रकार के भले या बुरे परीणाम नही होते
* २८ मुलगुणो का अखंडीत पालन ( refer to comments for details )
* २२ परीषहो को सहन करना ( refer to commetns for details )
* १२ प्रकार के तप का आदर
--आदर करना यानी स्वेच्छा से जीतना हो सके उतना करना
* कदाचित् ध्यान मुद्रा धारण करते हे
--बाहुबली स्वामी का द्रष्टान्त (example) की जो १ साल तक ध्यान मुद्रा मे स्थित थे
* कदाचित् बाह्य धर्मक्रिया करते हे
--वचन और शरीर की क्रिया बाह्य हे – क्यों की वो दीखाइ देती है
--आत्मा का उपयोग छोड़कर सभी क्रिया बाह्य क्रिया है, अतः मन की क्रिया भी बाह्य किर्या है.

Monday, March 17, 2008

Class Notes of Class 17th March

जय जिनेन्द्र,

आचार्य उपाध्याय और साधु के सामान्य स्वरूप का अवलोकन

->जो विरागी होकर अर्थात संसार शरीर और भोगों से विरक्त होकर
->समस्त परिग्रह का त्याग करके =
-14 अंतरंग परिग्रह (मिथ्यात्व, 4कषाय{क्रोध ,मान ,माया लोभ} , 9 नोकषाय {हास्य,रति,अरति,शोक, भय, जुगुप्सा, पुरुष वेद,स्त्री वेद, नपुंसक वेद})
-10 बहिरंग परिग्रह ( धन,धान्य,दास,दासी,कुप्य(छोटे बर्तन),भांड(बडे बर्तन),सोना,चांदी,क्षेत्र,वास्तु)
-पांच पापों का त्याग (हिंसा, झूंठ, चोरी, कुशील, परिग्रह)
->शुद्धोपयोगरूप अर्थात अपनी आत्मा मे ही लीनता
->परद्रव्य में अहंबुद्धि धारण नहीं करते और परभावों मे ममत्व नहीं करते
बुद्धि २ प्रकार की:-
1.अहं बुद्धि अर्थात द्रव्यपना कहा है जैसे मैं क्या हूं (मैं लडका, मैं लडकी, मैं बेटा, मैं बेटी आदि)
2.मम बुद्धि अर्थात द्रव्य की विशेषता रूप जैसे मेरा क्या है ( मेरा घर, मेरा मकान आदि)
->ये जो परद्रव्य हैं उनको जानते हैं लेकिन उनको अच्छा बुरा मानकर उनमें राग द्वेष नहीं करते
->शरीर की अनेक अवस्थाये होती है जैसे (रॊगी, कृश, वृद्ध.. ),बाह्य नाना निमित्त बनते है जैसे(सर्दी, गर्मी)
परंतु उनमे कुछ भी सुख दुख नहीं मानते और उदासीन होकर अर्थात अंतरंग में राग द्वेष से रहित है
और निश्चल वृत्ति को धारण करते हैं अर्थात बाह्य में शांत रूप से बैठते हैं। अपना उपयोग अपनी आत्मा में ही स्थिर रखते हैं।


विशाल

Thursday, March 13, 2008

क्लास नोट्स फ्रॉम ३/१२/08

These are the notes from last MMP class- please review and let me know of changes I need to make.

थैंक्स,
Shweta


3/12/08

In addition to learning about sva and pardravya, understanding siddha ka swarup helps understand the difference between aupadhikbhaav and svabhaav- anything that is a natural quality or characteristic is svabhaav- anything that is acquired or attached is aupadhik. औपाधिक bhaavs are the ones that have been acquired due to the result of karmas. For example, पदवी is something we honor some one with like a title or so- so anything that has been achieved like that or is aupadhik in nature, is not the natural state of aatma. Thus understanding the siddhas helps understand the difference between aupadhik and svabhaav and helps understand the true nature of pure aatma.

Understanding the swarup of siddha, encourages and inspires normal people to become like siddha (siddho ke samaan swayam hone kaa saadhan). They provide an instrument in helping us become like them. Therefore they become a sort of reflection of the ideal state that we should try, aim for and achieve. Additionally, they have become krutkrutya meaning they have done everything that is worth doing. This is the reason why they will remain in the siddha state for anant kaal- since they have done everything and will no longer have any desire to do anything henceforth.

We should therefore worship such complete (nishpann) souls or siddhas.


Acharya, Upadhaya, Sadhu ka saamanya swarup

What does viraagi mean- viraagi means the one who finds sadness and displeasure in the usual worldly matters and finds that things that we normally enjoy like good food, good clothes, relationships etc। are but a source of unhappiness and not happiness. This is a form of belief and is different from vitraagi- vitraagi is a form of charitra (implementation) and is for some one who has over taken raag, dvesh etc.

Viraagi ke teen lakshan :
1> sansaar ke prati udasinta
2> sharir se bhinn hu aisa sochna
3> bhog se virakti - bhog sukh nahi dukh hi laatein hain aisa sochna

What does samast parigrah mean- samast parigrah means parigrah and all the 4 paap sthanaks before that (hinsa, juth, chori, kushil)

What is shuddhopyogrup- there are two types: shuddhopyog rup and shubhopyog rup। Shuddhopyogrup is the higher of the two meanings.

Antarang parigrah is of 14 types:1> मिथ्यात्व 2> 4 types of kashay: krodh maan maya lobh ( subtypes are described below ) 3> 9 types of noashay: 3 ved, hasi, rati , arati, bhay, shoka, जुगुप्सा

4 types of kashay: Anantanubandhi, pratyakhani, apratyakhani and sanjwalan.

Tuesday, March 11, 2008

Class Notes - 03/11/2008

Siddha Swarup:
-> Grahastha-avastha ko tyagkar, Munidharma sadhan dwara 4 ghati karmon ka nash hone par jinke anant chatushtay bhav(Anant gyan, Anant darshan, Anant sukh, Anant virya) pragat hue hai tatha kuch kaal piche 4 Aghati karmon ka jinko nash hua hai ve Siddha parmesthi "Dhyan me prayojaniya hai" atah hum unke swarup ko Dhyate hai.

-> 4 Aghati karma: Goon
Ayu -Avagahantva
Naam -Sukshmatva
Gotra- Agurulaghutva
Vedniya -Avyabadhatva

-> Unhe munidharma sadhan(Shuddha bhav rup sadhan) dwara moksh fal ki prapti hui hai.

->Munidharma sadhan do prakar se hai.1) Shubh bhav rup sadhan :- Mahavrat, samiti, Gupti adi kriya rup shubh bhav.2) Shuddha Bhav :- Atma main sthirta rup parinam shuddha bhav hai.

-> Ve urdhva gaman rup swabhav se lok ke agra bhag me virajman hue hai. Siddha avastha prapt hote hi ve usi avastha mein (standing, sitting) aur jahan hain usi kshetra se sidhe tin lok ke agra bhag mein virajman hote hai.

-> Tin lok ke bahar ka vistar alokakash hai. Vahan dharm aur adharm dravya nahin hone se siddha bhagvan tin lok ke agra bhag mein ja kar ruk jate hai.

-> Ve samast par-dravyon se rahit hai, mukt hai aur unka akar charam sharir se kinchit nune purushakar avasthit hua hai. sharir ka pola pan jahan atama ka pradesh nahin hota hai vo bhag sikudne ke karan unka akar antim sharir se thoda kum purushakar hota hai.

->Siddha bhagvan amurtic hai so unhe nirakar bhi kahetein hai.

-> Amurtic mane jo pratyaksh na dekha ja sake aur murtic mane jo pratyaksh dekha ja sake. Atma sharir se alag koi vastu hai ye gyan sirf keval gyani hi jan sakte hai.

->Ve sarva prakar ke karmon(Dravya karma, Bhav Karma, No Karma) se rahit hai atah sampurn rup se apne swabhav ko prapt hue hai.

Dravya karma- Gyana varnadi 8 karma.
Bhav karma- Rag, dveshadi vibhav bhav.
No karma- Sharir ityadi

-> Dravya karma aur bhav karma ek dusre ke madhyam se(Dravya karma ke phal se bhav karma rup parinam hona aur usi parinamon ki vajeh se naye dravya karma bandhana) hone par bhi atma ka parinaman(shubh-ashubh bhav) atma ke adhin hai.

-> Arahant parmesthi ke bhav karma ka sampurna nash hua hai tatha dravya karma ka anshic nash hua hai.

->Siddha parmeshthi ke vedniya karma ka nash hone se avyabadhatva goon pragat hota hai arthat unke sukh me koi badha nahin hoti.

-> arahant parmeshthi ke vedniya karma hone par bhi mohniy karma nahin hone se unke sukh me bhi koi badha nahin hoti.

-> Jinke no karma ka nash hone se amurtic pana pragat hua hai tatha Bhav karma ka nash hone se nirakul anandmaya shuddha swabhavrup painaman ho raha hai.

-> Jinke dhyanh se bhavya jivon ko swa-dravya aur par-dravyon ka vigyan(vishesh gyan) hota hai aise siddha bhagvan ko hum namskar karte hai.

Swarupa

Class Notes on 3/10/2008

जय जिनेन्द्र,

अरिहंतों का स्वरूप :-
-> अनंत चतुष्टय( अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत सुख, अनंत वीर्य) के धारी हैं।
-> अनंत वीर्य द्वारा समस्त जीवादि द्रव्यों को अनंत गुण पर्याय सहित युगपत जानने की सामर्थ्य धारण करते है ।
-> अनंत सुख निराकुल है,और अनंत दो तरह से है...
१ . समय के अनुसार अर्थात अनंत काल तक सुख रहेगा ,
२. अतीन्द्रिय सुख है अर्थात इंद्रिय रहित सुख है।
-> अरिहंत 18 दोषों से रहित हैं:- भूख, प्यास, बीमारी, बुढापा, जन्म, मृत्यु, मोह, राग, द्वेष, रति, अरति, भय, चिंता , गर्व, विस्मय(अचरज),निद्रा, खेद(शोक), स्वेद(पसीना)
-> अरिहंत को देवाधिदेव कहा है अर्थात वो देवों के भी अधिपति हैं।
-> अरिहंत आयुध(अस्त्र-शस्त्र), अंबरादिक(वस्त्रादिक), अंगविकारादिक(काम, क्रोध, लोभ आदि) से रहित हैं।
-> परमऔदारिक शरीर है:-
औदारिक शरीर मनुष्य और तिर्यंचों के होता है, जो स्थूल है। अरिहंतों का शरीर परम औदारिक २ तरह से है :- धातु उपधातु से रहित है, और निगोदिया(सूक्ष्म अवगाहनी जीव) जीवों से रहित है।
-> वचनों से धर्म तीर्थ प्रवर्तता है, तीर्थ अर्थात तिरा जाये,
अरिहंत के वचनों के आश्रय से संसार भव से पार हो जाय।
-> जीवों का कल्याण होता है अर्थात सभी जीवों को सुख की प्राप्ति होती है।
-> अनेक प्रकार के अतिशय व वैभव पाया जाता है , उनके 34 अतिशय कहे है उदाहरणार्थ:-
नख ,केश नहीं बढना
अष्ट प्रातिहार्य(भामन्डल,सिंहासन,चंवर ढुरना,तीन छत्र, दुंदुभि, पुष्प वर्षा,वाणी खिरना , अशोक वृक्ष)
100 योजन तक सुभिक्ष (शांति) रहना
चतुर्मुख दिखना
परछाई नही दिखना
-> देव व गणधर जिनकी अपने हित के लिये (सुख प्राप्ति के लिये) सेवा करते हैं, यहां देव अर्थात रागी जीवों में सर्वोत्कृष्ट और गणधर अर्थात वीतरागी जीवों में सर्वोत्कृष्ट सुख प्राप्ति के लिये उनकी सेवा करते है।
-> अरिहंत देव सर्व प्रकार से पूजने योग्य हैं ,सर्व प्रकार अर्थात मन(गुणों का स्मरण) , वचन(भक्ति पूजा आदि द्वारा), काय(कलश, पंचनमस्कार आदि), कृत, कारित, अनुमोदना द्वारा पूजने योग्य हैं।


Sunaina Jain

Saturday, March 8, 2008

Template

This is the template that we will follow to post the class notes.

"

Title: Class Notes - (date of the class, MM/DD/YYYY)







Written By (Your name)

"



If you have any questions, please post the comments. Thanks.

Thursday, March 6, 2008

Class Notes from 03/05/2008

Jai Jinendra,

Moksh Marg prakashak Granth me Mangala Charan se shuruat ki hai. Namokar Mantra Aacharya shri Pushpadantji ke SHATKHANDAGAM Granth me se lia hua hai, or ham ye kah sakte hai ki usme sab se paheli bar likha hua tha.

Namokar Mantra me sarv lok ke panch permeshthi ko namasskar kia hua hai.

ARIHANT SWARUP

4 GHATI karmo ka kshay - Nash kia.

Darshnavarnia karma ka nash karke ----------Anant Darshan ko Prapt kia.
Gyanavarnia karma ka nash karke ---------- Anant Gyan ko Prapt kia.
Antray karma ka nash karke -----------------Anant Virya ko Prapt kia.
Mohnia karma ka nash karke -----------------Anant Sukh ko Prapt kia.

Gyan - Swa or Par ke bhed ko janta hai.

Dravya = Guno ke samuh ko Dravya kahte hai
Gun = Dravya ke sampurn bhago me or uski sabhi avastha me jo rahte hai usko gun kahte hai.
Paryay = Avastha aur guno ke parinaman ko paryaay kahte hain

If there is any mistake in this, please correct that.

Avani Mehta Shah

Wednesday, March 5, 2008

class on 3/4/08

१.प. टोडरमलजी द्वारा लिखित टीकायें:

  • गोम्मटसार जीवकाण्ड
  • गोम्मटसार कर्मकाण्ड
  • लब्धिसार
  • क्षपणासार
  • त्रिलोकसार
  • आत्मानुशासन
  • पुरुषार्थसिद्धिउपाय
  • मूल ग्रंथ मोक्षमार्ग प्रकाशक।

२ .स्वाध्याय से होने वाले लाभ:
* क्रोधादी कषायो की टू मंदता होती है ।
*पचेंद्रिय के विषयों मै होने वाली प्रवृत्ति रुकती है।
*अति चंचल मन भी एकाग्र होता है।
*हिन्सादी पाँच पाप नही होते है।
*अल्प ज्ञान होने पर भी त्रिलोक के तीन काल सम्बन्धी चार - अचर पदार्थों का ज्ञान होता है।
*हेय उपादेय पदार्थों की पहचान होती है।
*ज्ञान आत्मसन्मुख होता है।
*अधिक अधिक ज्ञान होने पर आनंद की प्राप्ति होती है।
*लोक मी महिमा \ यश विशेष होता है।
*सातिशय पुण्य का बाँध होता है।
इतने गुण तो स्वाध्याय करने से तत्काल ही प्रगट होते है, इसलिए स्वाध्याय अवश्य करना।

३ . मोक्ष् मार्ग प्रकाशक में कुल नौ आधिकार हैं ।
४ . मंगल = मम्‌ + गल अर्थात जो पापों को गलावे, एवं मंग + ला अर्थात सुख लावे ।
५ . वीतराग = सम्यक दर्शन व सम्यक चारित्र ।
६ .विज्ञान = सम्यक ज्ञान


७ .मंगलाचरण का अर्थ :
"जो मंगलमय है , मंगलकारी है जिसके द्वारा अरिहंतादी महान हुए हें ऐसे वीतराग विज्ञान अर्थात सम्यक दर्शन ,
सम्यक ज्ञान , सम्यक चरित्र को नमस्कार हो

Posted by Sarika