Tuesday, June 30, 2009

विनय मिथ्यात्व भाव और संशय मिथ्यत्व भाव

Class Date: 06/29/2009
Chapter: Bhavdeepika
Page#: 37-38
Paragraph #:
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Summary:

विनय मिथ्यात्व भाव:
· योग्य-अयोग्य के विचार रहित देव, गुरु, धर्मादिमें से एक को मुख्य करना
· लोकमे, अर्थ, भव, मोक्श, लोभ के लिय जीव विनय मिथ्यत्व करता है
· विनय धर्म का अंग भी है
· विनय संपन्नता सोलकरन भावना में भी है
· पंचाचार में विनय तप भी है

संशय मिथ्यत्व भाव:
· देव में संशय करना
· जिनमतमें देव का स्वरुप सर्वग्य, सर्वदर्शी, सर्व आवरन रहित, सर्व मोह भाव तथा कशाय रहित ग्याता द्रष्टा, अपने स्वाभाविक सुख का भोगता, आनंदकंद, नित्य, इत्यादि विशेषणों सहित कहा है.
· अन्य मत में देव का स्वरुप अनेक प्रकार से कहा है:
o वह एक ब्रह्म है
o ब्रह्म ही सर्व पदार्थरुप प्रवर्त्तते है
o स्रुष्टि न्यारी है और और इश्वर न्यारा है
o स्रुष्टि इश्वर ने रची है
o इश्वर अनदि तत्व है और स्रुष्टि भी अनादि है
o संसारी जीव जैसा करते है वैसा स्वर्ग-नरक में सुख-दुःख भोगते है
o इश्वर स्वर्ग-नरक में सुख-दुःख देते है
o इश्वर अच्छी-बुरी प्रव्रुति कराता है
o शुभाशुभ प्रव्रुति का इश्वर करता है
o इश्वर को कोइ अकर्ता मानते है
o इश्वर को काम-क्रोधादि प्रव्रुति सहित मानते है
o सांसरिक सुख का भोगता मानते है
· इस प्रकार संशय मिथ्यात्व पाया जाता है

1 comment:

Vikas said...

Thanks for posting.

Couple correction:
लोकमे, अर्थ, भव, मोक्श, लोभ के लिय जीव विनय मिथ्यत्व करता है
Correction: मोक्ष के लिए विनय मिथ्यात्व नहीं है. यह पांच विनय के भेद है, विनय मिथ्यात्व के नहीं. इनमे से ४ विनय संसार रूप है, और मोक्ष विनय मोक्ष के लिए है.
भव विनय नहीं, भय विनय है.

इस प्रकार संशय मिथ्यात्व पाया जाता है
Clarification: इस प्रकार जिनमत में और अन्य मत में निर्णय नहीं होना कि - जिन-सर्वज्ञ देव साचे कि अन्य मति-देव साचे, वो देव सम्बन्धी संशय मिथ्यात्व है.