Tuesday, June 23, 2009

धर्म, आप्त, आगम सम्बब्धित एकांत मिथ्यात्व

Class Date: 6/22/09
Chapter: 4(bhavdipika)
Page#: 37
Paragraph #: last paragraph
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Summary:


* अभी तक हमने जाना कि ५ प्रकार के भाव में औदायिक भाव है । उसका एक भेद है मिथ्यात्व, उसके २ भेद है: अग्रहित और ग्रहीत ।


ग्रहीत मिथ्यात्व : जो इसी भाव में पर का उपदेश सुनकर ग्रहण किया जाए , सामान्य से कुगुरू, कुदेव, कुधर्म का श्रद्धान गृहीत मिथ्यात्व है
कुश्रुत ज्ञान : लौकिक महाभारत , रामायण पढ़ना
इस गृहीत मिथ्यात्व के ५ भेद है :
एकांत
विनय
संशय
अज्ञान
विपरीत
यहाँ एकांत मिथ्यात्व में देव, गुरु सम्बन्धित बात हो गई थी अब धर्म सम्बन्धी एकांत मिथ्यात्व का वर्णन करते हैं -
तातें ...........

आगे कहते है निश्चय और व्यवहार दोनों ही धर्म के अंग है अपनी शक्ति रुप से धर्म क्रिया का प्रवर्तन करना यदि जीव को द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के अनुसार संयोंग प्राप्त नहीं हो पा रहे है फिर भी वह कर रहा है तो इसका मतलब है की उसके अन्तरंग मैं कुछ पक्ष पड़ा है कि हमको यह कार्य करना ही है, उसके राग द्वेष मिथ्यात्व का भाव पड़ा है
यदि जीव व्यवहार तथा निश्चय दोनों को यथार्थरूप जानकर प्रवर्त्तन करेगा तो दोनों कि सापेक्षेता नहीं छुटेगी यदि दोनों में से किसी एक को भी अधुरा जानेगा और प्रवर्त्तन करेगा तो आभास हुए बिना नहीं रहेगा
इसलिए हमें सबसे पहले हमारा लक्ष्य क्या है यह निश्चित करना , फिर अपनी प्रवृत्ति से लक्ष्य कि प्राप्ति हो रही है या नहीं यह देखो लक्ष्य यदि सही है तो उसकी प्राप्ति के निमित्त साधन भी अपने आप मिल जायेंगे और यदि वो नहीं मिलेंगे तो जीव खुद उन्हें खोज लेगा

इस प्रकार दोनों कि सापेक्षता न छोड़ते हुए, व्यवहार धर्म को कारण मान कार्यरूप निश्चय धर्म को पुष्ट करना ऐसा सम्यक भाव का स्वरुप कहा है
किन्तु ऐसा न जानकर मिथ्यात्व / कषाय के उदय से धर्म के किसी एक अंग को ही सर्वथा धर्म मान लेना, उसी से लक्ष्य सिद्धि मान लेना ही धर्म के आश्रय से एकांत मिथ्यात्व भाव है

आगे आप्त के सम्बन्ध में एकांत मिथ्यात्व कहते है :
आप्त अर्थात जो हितोपदेशी है, आगम का उपदेश देवे सो वह आप्त है
मूल आप्त : अरहंत, तीर्थंकर भगवान
उत्तर आप्त : गणधर, आचार्य, गृहस्थ
* आप्त को ही मुख्या मानना; अन्य ५ पदार्थों का गौण या निषेध करना ऐसा मानना की आप्त ही सब पदार्थों को बताने वाला है इसीलिए वो ही ईश्वर है क्योंकि हित अहित का, जीव के कल्याण का उपदेश तो आप्त ही देने वाले हैं
* उसमे भी मूल आप्त को ही मानना
* गणधर को ही आप्त मानना या मुनि को ही, या गृहस्थ में बहुत पढ़े को ही आप्त मानना
* उसमें भी संस्कृत, प्राकृत आदि ग्रंथो का जानकार पढ़ने वाला है, को ही आप्त मानना
* जो कुल वाले, धन वाले उपदेशक है उस आप्त को ही मानना
उनसे ही सुनना, अन्य को न सुनना और यदि सुनाता भी है तो गौणपने से सुनना इत्यादि आप्ताश्रय एकांत मिथ्यात्व भाव हैं
अब इसमे सम्यक भाव किस प्रकार है वह बताते हैं :
जो अन्य ५ तत्वों के साथ वक्ता को भी मानना जहाँ वक्ता कैसा हो ये बताते है - वह जिन प्रणित सत्यार्थ का वक्ता हो, वह कषाय रहित जीवों के कल्याण की बात बतावे वो ही यथार्थ वक्ता है
सो उस वक्ता में भी सब वक्ताओं को सामान मानना , गौण मुख्य भेद न कर सब के पास सुनना वह सम्यक भाव है

अब आगम के सम्बन्ध में एकांत मिथ्यात्व का वर्णन करते है :
* आगम मैं भी एक पक्ष को मुख्य कर मानना जैसे सिर्फ प्रथमानुयोग, या चरणानुयोग या करानानुयोग या सिर्फ द्रव्यानुयोग आगम को ही मानना उसे समझाते हैं : आगम में जो भी बताया है वो सब प्रयोजनभुत है, चारों ही अनुयोंगों से वीतरागता की सिद्धि होती है अत: चारों ही अनुयोंगो को मानना, पढ़ना
* तथा किसी अनुयोंग में भी किसी शास्त्र को ही मुख्य मानना, दुसरे को गौण कर देना, उसका अभ्यास ही न करना उसे कहते है की समस्त शास्त्र ही आगम का अंग है तथा वे कल्याण का कारण है अत: समस्त शास्त्रों का अभ्यास करना

अब आगे ९ पदार्थ सम्बंधित एकांत मिथ्यात्व का वर्णन करते हैं "
* ९ पदार्थो में से भी किसी एक पदार्थ को या २ या ३ आदि पदार्थो को ही मानना बाकी सब को निषेध या गौण करना
* इन पदार्थो को अस्ति रूप ही मानना या नास्ति रूप ही मानना या नित्य ही मानना या अनीय ही मानना कहने का तात्पर्य है की वास्तु/ पदार्थो के सब धर्मो को न मानना; अ तो द्रव्य को मुख्य कर या पर्याय को मुख्य कर एक ही धर्म को मानना पदार्थ सम्बंधित एकांत मिथ्यात्व भाव है

1 comment:

Vikas said...

Thanks for sending.
General comment: वाक्य पूर्ण होने के पश्चात पूर्ण-विराम या full-stop की आवश्यकता है

कुश्रुत ज्ञान : लौकिक महाभारत , रामायण पढ़ना
Correction: अन्य ग्रंथ पदना मात्र कुश्रुत ज्ञान नहीं है. उन्हे पदकर सत्य जानना मानना विपरीत ज्ञान है.

"यदि जीव को द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के अनुसार संयोंग प्राप्त नहीं हो पा रहे है फिर भी वह कर रहा है तो इसका मतलब .."
प्रश्न: तो क्या कही पर धर्म रूप कार्य करने के बाह्य कारण न हो तो धर्म रूप आचरण छोड़ दे? for example, अमेरीका मे रात्री भोजन त्याग के अवसर नहीं है, तो रात्री भोजन प्रारंभ कर दे??