Wednesday, April 1, 2009

निर्जरा तत्त्व और मोक्ष तत्त्व सम्बन्धी अयथार्थ श्रद्धान:

Class Date: 3/31/09
Chapter: 4
Page#: 83-84
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Summary:

निर्जरा तत्त्व और मोक्ष तत्त्व सम्बन्धी अयथार्थ श्रद्धान:

निर्जरा : बंध का एक देश अभाव होना . कर्म के परमाणु का झडना.निर्जरा के दो प्रकार है
१. सविपाक निर्जरा - जब कर्मो का उदय हो, तब फल देके खीर जाये
२. अविपाक निर्जरा - पुरुषार्थ के द्वारा कर्मो को खीरा देना

निर्जरा तत्त्व को समज ने के लिए बंध तत्त्व को यथार्थ जानना जरुरी है, अगर बंध को यथार्थ नहीं पहिचानेंगे तो निर्जरा तत्त्व को यथार्थ नहीं जानेंगे, क्यूंकि दुःख का होना जानेगें तब उसका नष्ट करनेका उपाय करेंगे.

अपने को इन्द्रियों द्वारा सुक्ष्म रूप कर्मो का ज्ञान होता नहीं है, वही कर्मो में दुःख देने की शक्ति है, पर उसका अपने को ज्ञान नहीं है, इसलिए अन्य पदार्थों को दुःख का कारण जानकर उसी का अभाव करने का उपाय करते है. वो उपाय अपने आधीन नहीं है. कदाचित दुःख दूर करने के उपाय से अगर कोई इष्ट संयोग मिलते है तो वो भी कर्मो के आधीन ही है.

इस प्रकार निर्जरा तत्त्व का अयथार्थ ज्ञान होने पर अयथार्थ श्रद्धान होता है

मोक्ष तत्त्व सम्बन्धी अयथार्थ श्रद्धान :

मोक्ष : सर्व कर्म बंध के अभाव का नाम मोक्ष है.

इस अवस्था में सर्व दुःख दूर हो जाये, अनंत सुख की प्राप्ति हो जाये, सर्व पदार्थ का त्रिकाली ज्ञान होता है.

मोक्ष तत्त्व को जानने के लिए बंध, बंध की सर्व अवस्था को बराबर जानना जरुरी है, जैसे किसी को कोई रोग है, रोग से हुई अवस्था को नहीं जानेगा तो बिना रोग वाली अवस्था को कैसे जानेगा? इसी प्रकार बंध, बंध की अवस्था में दुःख है यह जानना जरुरी है, तभी मोक्ष के सुख का यथार्थ श्रद्धान हो पायेगा.

मोक्ष का श्रद्धान: मोक्ष के स्वरुप को बराबर जाने, वही परम उपादेय है ऐसा माने, मुझे वो अवस्था प्राप्त करनी है, में वो अवस्था प्राप्त कर सकता हु. एक बार श्रद्धा होने के बाद, जिव मोक्ष प्राप्त करने का पुरुषार्थ करता है, संवर - निर्जरा रूप परिणमन करता है. वीतरागता प्रत्ये रोग होता है. जिन्होंने मोक्ष प्राप्त कर लिया है उनके चरित्र पढ़कर खुद भी वो कार्य करता है.

जिव को कर्मो का और उसकी शक्ति का ज्ञान नहीं है, इसलिए वो दुःख के कारण को दूर करना चाहता है और मनाता है की सर्वथा दुःख दूर होने का कारण इष्ट सामग्रियों को जुटाकर सर्वथा सुखी होना चाहता है, परन्तु ऐसा संभव नहीं है, इसलिए वो दुखी ही रहेता है.

इसप्रकार मिथ्या दर्शन से मोक्ष तत्त्व का अयथार्थ ज्ञान होने से अयथार्थ श्रद्धान होता है

सामान्य चर्चा:
  • राग से पहेले द्वेष जाता है, हम किसीके प्रति द्वेष करते है तब उसके पीछे भी राग होता है.
  • प्रतिकूल संजोगे में द्वेष होता है क्यूंकि अनुकूल संजोगो के प्रति राग होता है. द्वेष को मिटाने के लिए राग को जितना जरुरी है.
  • राग द्वेष चले जाने से धीरे धीरे कर्म कम होते जाते है, ढीले पड़ने लगते है, ओर राग द्वेष जाने से सब के प्रति समय भाव होता है.
  • ७ तत्वों के श्रद्धान से लगता है की में पूर्ण ज्ञानमय हु, बाह्य पदार्थो में सुख नहीं है.

1 comment:

Vikas said...

Very good summary. Thanks for posting.
It's important to realize:
"द्वेष को मिटाने के लिए राग को जितना जरुरी है."वीतरागता प्रत्ये रोग होता है should be वीतरागता प्रति राग होता है