Tuesday, April 7, 2009

पुण्य पाप संबंधी अयथार्थ श्रद्धान

Class Date:4/06/09
Chapter:4th
Page#:84
Paragraph #:3rd
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मो्क्ष तत्व संबंधी भूल: जीव को मोक्ष के सच्चे स्वरुप का तो ज्ञान नहीं होता है, वह उस अतीन्द्रिय सुख कि कल्पना ही नहीं कर पाता है, और मोक्ष का श्रद्धान नहीं करता है। देव दर्शन से ही हमें पता चलता है कि "मोक्ष है, मोक्ष हो सकता है और हमें मोक्ष हो सकता है।" इतनी बातों का ही सच्च श्रद्धान हो जाये तो मोक्ष तत्व संबंधी भूल दूर हो जायेगी, जो इसका सच्चा श्रद्धान करेगा, वो नियम से संवर निर्जरा को समझेगा।
Summary: पुण्य पाप संबंधी अयथार्थ श्रद्धान:
*पुण्य और पाप तत्व , आस्त्रव तत्व के ही विशेष हैं, किन्तु जीव इसमें भी राग द्वेष बुद्धी करता है।
* पुण्य के उदय को तो भला जानता है और पाप के उदय को बुरा जानता है।
*इसी तरह पुण्यबंध का कारण शुभ भाव उन्हें भला जानकर उपादेय मानता है और पाप बंध का कारण अशुभ भाव को हेय मानता है।
इस तरह यह जीव पुण्य और पाप के बंध और उदय में राग और द्वेष बुद्धि करता है , जो कि भ्रम है क्योंकि पुण्य हो या पाप का उदय दोनों ही आकुलता के कारण है तथा शुभ और अशुभ भाव दोनों ही मूल में कर्मबंध के कारण है। इस तरह यह जीब पुण्य और पाप संबंधी अयथार्थ श्रद्धान करता है।

प्र. पुण्य और पाप को अलग से क्यों कहा?
उ. चूंकी सामन्य से विशेष बलवान है तथा आस्त्रव तत्व में तो सिर्फ कर्म दुख का करण है यह बताया है किन्तु यहां पर इसकी भूल कि पुण्य भला और पाप बुरा है ये बताने के लिये इन्हें अलग से कहा है।

प्र. पाप के उदय से तो आकुलता तो समझ में आती है किन्तु पुण्य के उदय में आकुलता कैसे होती है?
उ. चार प्रकार की इच्छाओं में से एक इच्छा पुण्य के उदय में अन्य इच्छाओं के अनुसार प्रवर्तने की होती है, जो की आकुलता का कारण है।

1 comment:

Vikas said...

Good summary. Thanks for posting.