Saturday, May 31, 2008

कर्म बन्ध का निदान

कर्म बन्धन का निदान (कारण)

प्रश्न : आठ कर्मों में से कौनसे कर्म कर्म-बन्ध में निमित्त हैं ?
उत्तर : परमार्थ (निश्चय) से सिर्फ़ मोहनीय का उदय कर्म बन्ध में निमित्त है । ज्ञानावर्णादि शेष ७ कर्मों के उदय से कर्म-बन्ध नहीं होता है ।
इसे टोडरमलजी तर्क से इस प्रकार से सिद्ध करते हैं -
अ) ज्ञान का कम ज्यादा होना अगर कर्म बन्ध में निमित्त हो तो कर्म बन्धन कभी खत्म नहीं होगा । केवलज्ञानावरण कर्म का उदय जीव को १२ गुण्अस्थान तक होता है । अघातिया कर्म का उदय सब (१४) गुणस्थानों में होता है । उससे अगर कर्म बन्धन होता रहा तो बन्धन से छुट्कारा सम्भव नहीं होगा ।
ब) ज्ञान/दर्शन जीव का स्वभाव है । स्वभाव में कमी या ज्यादा होना अगर कर्म बन्धन में कारण हो तो बन्ध कभी रुके ही नहीं ।
निष्कर्ष :
जीव को ज्ञान/दर्शन में न्यूनता या अधिकता से कर्म-बन्ध नहीं होता है । [ज्ञानावर्णी / दर्शनावर्णी]
बाहरी (सांसारिक) पदार्थ से कर्म-बन्ध नहीं होता है । [नाम / गोत्र / आयु / वेदनीय]
अन्तराय कर्म के उदय से कर्म-बन्ध नहीं होता है ।

प्रश्न : भेद-विज्ञान ना होने पर या देव-शास्त्र-गुरु की सच्ची पहचान ना होने से भी तो कर्म बन्ध होता होगा ?
उत्तर : उपचार से, उसमे ज्ञानावर्णी / दर्शनावर्णी का उदय निमित्त हो सकता है । परमार्थ (वास्तव / निश्च्य) से तो भेद-विज्ञान का ना होना या देव-शास्त्र-गुरु की सच्ची पहचान ना होना दर्शन मोहनीय कर्म के उदय से होता है ।
प्रश्न : अन्तराय कर्म के उदय से कोई लाभ में बाधा आने से कर्म बन्ध होता होगा ?
उत्तर : अन्तराय कर्म का उदय वास्तव में कर्म बन्ध का निमित्त नहीं है । मुनि महाराज को अन्तराय वश भोजन ना मिले तो भी वे समता धारण करते हैं । वहां कषायों के मन्द होने से उन्हे कर्म-बन्ध नहीं के बराबर होता है । वास्तव में तो कर्म बन्ध कषाय (चारित्र मोहनीय) की न्यूनता व अधिकता से हुआ ।

1 comment:

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