Wednesday, June 4, 2008

पार्श्वनाथ भगवान चरित्र

पार्श्वनाथ भगवान की कथा आचार्य गुणभद्रस्वामी रचित उत्तरपुराण तथा पं दोलतराम रचित पार्श्वनाथचरित के आधार से लिखी गई है. पार्श्वनाथ भगवान की यह कथा उत्तम क्षमा धर्मं का बोध देती है - शत्रु के प्रति भी मध्यस्थ रहकर हमे आत्म साधना करना सिखाती है -

१. दो भाई मरुभुती और कमठ
चतुर्थ काल - पोदनपुर गाँव - अरविंद राजा के मंत्री के दो पुत्र - मरुभुती और कमठ - मरुभुती ही भगवान पार्श्वनाथ का ९ पूर्व भव है कमठ क्रोधी और दुराचारी और मरुभुती शांत और सरल - मंत्री ने दीक्षा ली - राजा ने उसके पुत्र को मंत्री बनाया - कमठ क्रोधी और दुराचारी होने से मंत्री पद नही मिला - और छोटे भाई को मिला यह वजह से कमठ के मनमे इर्षा उत्पन्न हुई - राजा मरुभुती को लेकर दूसरे राजा के साथ युध्ध करने गया - कमठ ने दुष्ठ वर्तन सुरु कर दिया - मरुभुती की सुंदर पत्नी के साथ दुराचार किया - जब राजा लौटे तब यह बातों का पता चला - राजा ने उसको बाहर निकाल दिया - कमठ दुखी हो कर चला गया - तापस लोगो - मठ मे जाकर बाबा बनकर रहेने लगा - कुगुरु की सेवा करने लगा - वैराग्य और ज्ञान था नही - क्रोध के कारन एक बड़ा पत्थर हाथ मे उठाकर तप करने लगा - मरुभुती युध्ध से वापस आया तब पता चला की राजा ने कमठ को निकाल दिया है - मरुभुती को दुःख हुआ - उसको ढ़ुन्ढ़्ने निकला - पता चला की वह बाबा बनकर तप कर रहा है - मरुभुती ने कमठ को मिथ्यावेश छोड़ने को समजाया - मरुभुती ने कमठ को वंदन किया और क्रोध न करके घर चलने को कहा - पर कमठ का क्रोध बढ़ गया - उसको लगा की मरुभुती उसके पाप की बात सब को बता देगा - हाथ मे उठाया हुआ पत्थर का प्रहार मरुभुती के सिर पर किया - मरुभुती की मृत्यु - मरकर हाथी - कमठ ने अपने भाई को मारा यह बात पता चल गई - आश्रम से निकाल दिया - चोरी करनी सुरु की - पकड़ जाने पर बहुत मार पड़ी - कोई परिवर्तन नही हुआ- मरकर विषैला सर्प हुआ

२.हाथी - सर्प
मरुभुती मरकर हाथी हुआ- कमठ मरकर सर्प हुआ - राजा ने दीक्षा ली - सम्मेदसिखर की यात्रा के हेतु विशाल संघ चला जा रहा था - राजा जिन्होंने दीक्षा ली वो भी उसमे थे - मुनि (राजा) वृक्ष के निचे आत्म ध्यान मे बैठे थे - इतने मे हाथी पागल होकर इधर उधर दौड़ने लगा - नाम वज्रघोष - वन मे स्वछंद विहरता था - वन के मिष्ठ फूल - फल खाता था - एकदम वो भड़क उठा और पागल होकर लोगो को कुचलने लगा - लोग डर के मरे कांप रहे थे - मुनिराज के पास आया - हाथी ने मुनिराज के वक्ष मे एक चिह्न देखा - शांत हो गया - इन्हे तो मैंने कही देखा है - पागल पन मिट गया - मुनि ने अवधि ज्ञान द्वारा हाथी का पूर्व भव जान लिया - हाथी को संबोधन किया - हाथी को जतिस्मरण ज्ञान हुआ - अपने दुष्कर्मो का पश्यताप हुआ - विनय पूर्वक मस्तक जुककर मुनिराज की वाणी सुनने लगा - आत्म जानने की जिग्नासा जागृत हुई - मुनिराज ने सम्यग दर्शन की बात समजाई - हाथी के साथ साथ अनेक जिव को मुनिराज की वाणी सुन के सम्यग दर्शन प्राप्त हुआ - मुनिराज मे मुनि धर्मं, श्रावक धर्मं का उपदेश दिया - अनेक जीवो ने व्रत धारण किए - मुनिराज ने बताया की हाथी का भव कुछ भव पर्यंत सम्मेद सिखर से मोक्ष प्राप्त करेगा - अब हाथी संत हो गया था- त्रस हिंसा से अहार नही करता था - चलते समय देख कर चलता था - पूर्व भव का कमठ, क्रोध के कारन मरकर सर्प हुआ - वह भी इसी वन मे रहता था- अनेक जिव -जंतु को मारकर नविन पाप बांधता था - एक दिन प्यास लगने के कारन हाथी सरोवर मे पानी पीने गया - हाथी पानी पीने कुछ भीतर अन्दर गया तो उसका पाँव कीचड़ मे फस गया - बहुत प्रयत्न करके भी नही निकला - आहार - जल का त्याग किया - समाधि मरण किया लेने का फैसला किया - बन्दर ने बहुत प्रयत्न किए हाथी को बाहर निकाल ने का - उतने मे कमठ आया - हाथी को देखकर पूर्व भव का वैर यद् आया - हाथी को दंश मारा - हाथी का मरण हुआ - मरकर देव हुआ - सर्प को देखकर बंदरो को बड़ा क्रोध आया - सर्प को मार डाला - मारकर ५ वे नरक मे गया

३. १२ वे स्वर्ग मे देव - ५ मे नरक मे
देव मे नाम शशिप्रभ - स्वर्ग की दिव्या भूति देखकर आश्चर्य चकित हो गया - अवधि ज्ञान के द्वारा पूर्व भव जान लिया - जानकर धर्मं के प्रति सम्मान की भावना हुई - मुनिराज का पुनः पुनः स्मरण किया - शाश्वत जिन बिम्ब की पूजा की - सर्प से मरकर नरक मे असंख्यात वर्ष का दुःख सहन किया - क्रोध के साथ निकलकर भयंकर अजगर हुआ - देव चयकर मनुष्य हुए

४ जम्बुद्वीप के विदेह क्षेत्र मे अवतरित हुए - विद्युत गति राजा के पुत्र के रूप मे अवतरित हुए - नाम अग्निवेग - वन की शोभा निहार रहे थे - मुनि महाराज मिले - उनको देखकर अग्निवेग को बड़ी प्रसन्नता हुई - निकट जा कर वंदना की - मुनिराज का ध्यान खत्म होने पर पुनः नमस्कार किया - मुनिराज ने चरित्र अंगिका करने की बात समजाई - तुम्हारा संसार अब अति अल्प है - अपने मोक्ष की बात सुकर उन्हें आनंद हुआ - वैराग्य प्राप्त किया - कमठ का जिव जो नरक से अजगर हुआ वो भी इसी वन मे था - शिकार की शोध मे वो भटकता था- जंगल के पशु को पुरा निगल जाता था - एक बार मुनिराज अग्निवेग ध्यान मे थे - वह अजगर आया - मुनिराज ध्यान मे थे - मुनिराज को देखकर भी उसका क्रोध सांत नही हुआ - पूरे मुनिराज को निगल गया - अजगर के पेट मे आत्म ध्यान पूर्वक समाधि मरण - स्वर्ग मे देव - कमठ नारकी मे

५. १६ वे स्वर्ग मे देव - ६ नारकी मे
दोनों की आयु २२ सागर थी - एक सुख भोगता था - एक दुःख - दोनों मनुष्य लोक मे उत्पन्न हुआ - एक चक्रवर्ती एक शिकारी भील

६. चक्रवर्ती - शिकारी भील
जम्बुद्वीप के पश्चिम विदेह मे वज्रविर्य राजा के पुत्र के रूप मे जन्म - नाम वज्रनाभी - उम्र मे छोटे थे पर ज्ञानि थे - अनेक प्रकार की विद्या सिख ली थी - एकांत मे ध्यान धरकर चैत्यान्य के चिंतन मे बैठ जाते थे - युवा होने पर राज्याभिषेक हुआ - राज्भंदर मे सुदर्शन चक्र की उत्पत्ति हुई - अद्भुत वैभव होने पर भी वे जानते थे की यह सब तो अल्प काल तक रहेगा आत्मा का वैभव ही अनंत काल तक साथ रहेगा - सम्यग दर्शन रूपी सुदर्शन चक्र द्वारा मोह जित कर मोक्ष रूपी साम्राज्य प्राप्त करना चाहते थे - उनकी नगरी मे मुनिराज पधारे - मुनिराज ने वित्रगता का उपदेश दिया - चारित्र दशा अंगीकार करने को समजाया - चक्रवर्ती ने मुनिदशा अंगीकार की - एकबार वे एक शिला पर बैठे बैठे आत्मा ध्यान कर रहे थे - आसपास जंगल मे क्या चल रहा है वो उनको पता नही था - ध्यान मे एकाग्र थे उतने मे दूर से एक तीर आया - पूर्व भव का भाई कमठ कुरंग नाम का शिकारी भील था - उसने पूर्व भव के क्रोध के संस्कार के वश मुनिराज का शरीर विन्ध दिया - मुनिराज आत्मा मे मग्न थे - समाधि पूर्वक शरीर का त्याग कर ग्रैवेयक मे अहमिन्द्र हुआ - भील का जिव सत्व नरक मे गया

7. ग्रैवेयक मे अहमिन्द्र और सातवे नरक मे
दोनों की आयु २७ सगारोपम जितने असंख्यात वर्षो की थी - चयकर एक मनुष्य हुआ - एक सिंह

8. अयोध्या नगरी मे आनंद कुमार के रूप मे अवतरित हुए - आनद महाराजा महासभा मे बैठे थे - नन्दीश्वर पूजा का आयोजन - अष्ठान्हिका का उत्सव चल रहा था - विपुल्मती नाम के मुनिराज का आगमन हुआ - मुनिराज ने आत्मा के शुध्ध स्वाभाव, सम्यग दर्शन, अरिहंत के स्वरूप की बात समजाई - मुनिराज नगर मे अहार के लिए निकले - राजा ने अहार डान दिया - मुनिराज ने राजा के दो शेष भव की बात बताई - महाराजा धर्मं आराधना करते रहे - राजा ने अपने बाल मे श्वेत बाल देखा - ह्रदय वैराग्य मय हो उठा - मुनिदिक्षा अंगिकार की - मुनिराज को बारह अंग का ज्ञान उदित हुआ - अनेक रुध्धिया प्रगत हुई - मुनिराज वन मे ध्यान मग्न थे - इतने मे सिंह गर्जना करता हुआ वहां आ पहुँचा - वो कमठ का जिव था - ध्यानस्थ मुनि पर उसकी दृष्टि पड़ते ही क्रोध से गर्जना की - छलांग मारकर मुनिराज का गला दबा दिया - वहां से मुनिराज आनत स्वर्ग मे इन्द्र हुआ - सिंह मारकर पुनः नरक मे गया

9. आनंद मुनि स्वर्ग मे सिंह नरक मे

10. पार्श्वनाथ भगवान

Written By - Avani Shah.

1 comment:

Anonymous said...

jaijinendra Vishal
I appreciate a lot your effort of putting such a useful collection of jain literature on your blog.Though i am visiting your page for the first timebut hope i will be a frequent visitor now on wards
regards anita