Monday, June 9, 2008

नवीन कर्म बन्ध विचार:क्षय, क्षयोपक्षम, क्षायिक भाव आदि

जीव के पांच भाव होते हे :
१. परिणामिक भाव:- कर्म के उपशम, क्षय, क्षयोपशम और उदय से रहित / निरपेक्ष जीव के परिणामों को पारिणामिक भाव कह्ते हे ।
२. औदयिक भाव: -कर्मो के उदय के समय में या निमित्त से होने वाले जीव के भावों को औदयिक भाव कहते हे।
३. क्षायिक भाव:- कर्मों के क्षय से होने वाले जीव के भावों को क्षायिक भाव कहते हे।
४.औपशमिक भाव:- मोहनीय कर्म के उपशम से होने वाले जीव के भावों को औपशमिक भाव कहते है ।

प्र.- उपशम किसे कहते है?
उ. -कर्मों का अपने परिणामों के निमित्त से आगे पीछे करना वो उपशम(प्रशस्त उपशम) कहलाता है । उससे जो gap/empty space बनेगा तब उस gap/empty space में वो कर्म प्रकृति नहीं रहेगी ।

कुछ तथ्य औपशमिक भाव के बारे में:
  • ये भाव temporary शुद्ध भाव होता है ।
  • उपशमना केवल मोहनीय कर्म की ही हो सकती है।
  • ४ से ११ गुणस्थान तक ये भाव हो सकते है।
५. क्षायोपशमिक भाव: -कर्मों के क्षयोपशम के समय मे अर्थात निमित्त से होने वाले जीव के भावों को क्षायोपशमिक भाव कहते है ।
प्र.- क्षयोपशम किसे कहते है?
उ.-
  • वर्तमानकालीन सर्वघाति स्पर्धकों का उदयाभावीक्षय,
  • भविष्य में उदय में आने योग्य सर्वघाति स्पर्धकों का सदवस्थारुप उपशम,
  • वर्तमानकालीन देशघाति स्पर्धकों का उदय ,
इन तीनरुप कर्म की अवस्था को क्षयोपशम कहते है।
प्र. -उदयाभावीक्षय किसे कहते है?
उ. -सर्वघाति प्रकृतियों का इतना अनन्त गुण हीन-हीन हो जाना कि वो देशघाति में convert होकर उदय मे आये तो उसे उदयाभावी क्षय कहते है ।
-इसमें सर्वघाति प्रकृतियां उदय में आने के एक समय पूर्व देशघाति में convert होती हैं।

प्र.- अगर सर्वघाति प्रकृतियां देशघाति में convert नहीं हो तो क्या होगा?
उ.- ज्ञान का अंश प्रगट नहीं होगा तो जीव अचेतन हो जायेगा।

प्र.- सदवस्थारुप उपशम किसे कहते है?
उ.-वर्तमान समय को छोड्कर भविष्य मे उदय मे आने वाले कर्मों के सत्ता में रहने को सदवस्थारुप उपशम कहते है।

कुछ तथ्य:-
  • कर्म कि स्थिति पूरी होकर फल देने को उदय कहते है।
  • जो कर्म उदय में नहीं आ रहे है, बांध रखे हैं, जो भविष्य मे उदय में आयेंगे , वो कर्म सत्ता है।
  • एक कर्म के क्षायोपशमिक भाव और औदयिक भाव साथ - साथ में हो सकते है।
  • उपशम और क्षयोपशम घातियां कर्मों में ही applicable होते है।
  • सर्वघाति प्रकृतियों की quantity का बंध परिणामों पर निर्भर नहीं है, केवल स्थिति और अनुभाग बंध ही परिणाम पर निर्भर करते है।
  • केवल ज्ञान क्षायिक भाव है।
  • एक कर्म के क्षायिक भाव के साथ उसी कर्म का दूसरा कोइ भाव नहीं होग।
  • क्षायिक भाव मे सर्वघाति व देशघाति दोनों की प्रकृतियां सत्ता से नष्ट हो जयेंगी।


5 comments:

Vikas said...

Excellent. Very nice effort on creating images to explain bhaav.

One correction: Upasham ki definition prashast upasham ki hai. Please correct that.

Avani Mehta said...

Really nice explanation.

Shrish Jain said...

great explaination and diagrams.

Kunal said...

Very nice...you can take on the 'graphics editor' responsibility for this blog site from now on :)

Acharyashree Pravachan said...

wow that was really nice. Picture speak more then words. i like the Q&A style of writing.