Thursday, May 29, 2008

जीव और कर्म की भिन्नता पेज २३, २४, २५


जीव का लक्षण- चैतन्य (ज्ञान , दर्शन मयी है) आत्मा अमुर्तिक है, इन्द्रिओं से नही जान सकते है
What is संख्यात - मति श्रुति ज्ञान के जाना जा सकता हैं
What is असंख्यात - अवधि मन:पर्यय ज्ञान के जाना जा सकता हैं
What is अनंत – जो केवल ज्ञान से जाना जा सकता है.

कर्म का लक्षण - अचेतन है, उपयौग रहित, सोचने ओर समझने की शक्ति नही है, स्पर्श रस, गन्ध वर्ण युक्त है, It's a collection of the many putgal partical.

Thought: The putgal and the atama is together for countless number of years but not a single particle of Atama is converted Karmic particle and the not a single particle of Karmic partical can converted in to Atama.
Question: आत्मा अमुर्तिक है ओर कर्म सुक्षम पुद्‌गल है उसका आत्मा के साथ बंध केसे हो जाता है
मानना: आत्मा का कर्म के साथ बन्धन अनदि से है
निमित्त नैमित्तिक संबंध: कर्म ओर जीव का निमित्त नैमित्तिक संबंध है। कर्म अपने आप मे फ़ल देने कि शक्ति नहि रखता है पर उदय काल मे जीव का निमित्त पाकर फ़ल देता है (कर्म जीव के शुभ ओर अशुभ भावो के कार्ण आत्मा के साथ बन्ध जाते है ओर निमित्त पाकर पाकर अपना शुभ ओर अशुभ फ़ल देते है)

कर्म के प्रकार: ८ प्रकार के कर्म है जिन्हें दो प्रकर से विभाजित किया है
1- घातिया कर्म: जो कर्म आत्मा के गुणो का घात करते है वे घातिया कर्म है
१) एकदेश घाति- Some karma are present and some are not. The knowledge is partial (only Kevli bhagwaan has the full knowledge everybody else has partial)
२) सर्वदेश घाति- Copletely covered(Not knowledge at all)

Gyanaverni: ज्ञान को प्रगट नहि होने दे जेसे बादलो के आ जने पेर सुरज का प्रकाश रुप से देखाई देता है
Dhrshanaverni: दर्शन मे बाधा दे जिन बिम्म, मन्दिर दर्शन मे बाधा दे
Antaray: सता केर्मो, दान , लाभ, भोग उप्भोग मे बाधा उत्पन्न करे. शक्ति को प्रकट करने मे बाधा उत्पन्न करे
Mohanyey: आत्मा के स्वभाव को प्रगट नहि होने दे, जो देखाई देता है वह सत्य का आभस होता है पर असत्य होता है

2-अघातिया कर्म: जो कर्म आत्मा के गुणो ka घात नही करते है वे अघातिया कर्म है
vedneya
Ayau
Naam
Gotra


------------------------------------------------------------------रुचि जैन

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