Revision pg 21
मंगला चरण का अर्थ: मिथ्यात्व भाव - मोहनीय कर्म (मोह,राग, द्वेष) का अभाव होते निजभाव (अरिहंत अवस्था रूप भाव) प्रगट होता है. वो भाव हमेशा जयवंत रहो (सदा जय हो, वही उत्तम है) और वो भाव ही मोक्ष का उपाय है.
मोक्ष - छूटना - कोई भी बंधन से छूटना 4 बंधन - प्रकृति, प्रदेश, स्थिति,अनुभाग
कर्म बंध का निदान (कारण) संसार - संसरण - भ्रमण - हर पर्याय मे आत्मा की अवस्था अलग होती है - संसार भ्रमण
औपाधिक भाव - कर्म के उदय के समय मे - कर्म के निमित्त से जो भाव होते है
नैमित्तिक भाव - पर द्रव्य के निमित्त से जो भाव होते है
पारिणामिक भाव - कर्म के निमित्त के बिना जो भाव होते है
कर्मों के अनादी पने की सिद्धि:
Q: पुदगल परमाणु रागादिक निमित्त से कर्म रूप होते है; तो अनादी कर्म रूप कैसे है?
A : रागादिक का निमित्त तो नविन कर्म आते है उसी मे ही सम्भव है, अनादी अवस्था मे वो निमित्त नही है, निमित्त का कोई प्रयोजन नही है. यदि अनादी मे भी राग, द्वेष का निमित्त पना मने तो वो अनादीपना नही रहेता. इसलिए इसे एक सिध्धांत समजना चाहिए.
राग द्वेष रूप जो भाव होते है उससे कार्मण वर्गणा जिव से साथ associate होके कर्म रूप बनती है
तत्वप्रदिपिका - प्रवचनसार शास्त्र की व्याख्या मे सामान्यज्ञेयाधिकार मे कहा है की - रागादिक का कारण द्रव्य कर्म है और द्रव्य कर्म का कारण भाव कर्म है. यदि ऐसा हो तो इतरेतरश्रय दोष लगता है और यह process चलता रहेता है
इतरेतरश्रय दोष : एक असिध्ध बात सिध्ध करने के लिए दूसरी असिध्ध बात का सहारा लेने मे आता है, और दूसरी असिध्ध बात सिध्ध करने मे प्रथम असिध्ध बात का सहारा लेने मे आता है.
A ------causes ----> B and B ------causes ----> A
द्रव्य कर्म भाव कर्म से होते है और भाव कर्म द्रव्य कर्म से होते है यह इतरेतरश्रय दोष है.
यहा इतरेतरश्रय दोष नही लगता क्योंकि अनादी के द्रव्य कर्मो से नविन भाव कर्म होते है और वो नविन भाव कर्म से नविन द्रव्य कर्म होते है वो अनादी द्रव्य कर्म जैसे नही होते ( प्रकृति, प्रदेश, स्थिति,अनुभाग अलग होते है ) इस प्रकार यहा इतरेतरश्रय दोष नही लगता.
कर्म का अनादी से आत्मा के साथ सम्बन्ध है. ऐसा आगम मे कहा है और युक्ति से भी सम्भव है -अगर कर्म के निमित्त के बिना, पहेले से ही जिव को रागादिक कहा जाय तो रागादिक जिव का स्वाभाव हो जाएगा, और स्वाभाव मतलब पर के निमित्त के बिना जो हो वही स्वाभाव है. इसलिए कर्म का सम्बन्ध आत्मा के साथ अनादी से है.
Q:अलग अलग द्रव्य का अनादी से सम्बन्ध कैसे हो सकता है?
A: जैसे जल - दूध, तिल - तेल का सम्बन्ध अनादी है, कोई नविन मिलाप नही हुआ, इसी तरह अनादी से जिव - कर्म का सम्बन्ध है, नविन मिलाप नही हुआ.
सुक्ष्म पुदगल परमाणु एक दूसरे के साथ मिल जाने से उनके गुण भी एक दूसरे मे मिल जाते है परन्तु जिव - कर्म मिल जाते है पर उनके गुण आपस मे नही मिलते.
सम्बन्ध - जो पहेले भिन्न हो और बाद मे मिले हो उसको सम्बन्ध कहते है.
Q:जिव- कर्म तो अनादी से मिले हुआ है तो उसमे सम्बन्ध कैसे कह सकते है?
A:जिव - कर्म अनादी से मिले हुए थे पर बाद मे अलग हुए तब जानने मे आया की वो भिन्न थे, इस प्रकार अनुमान से पता चला की वो भिन्न थे और केवलज्ञान मे तो भिन्न भासित होता है.
इस प्रकार जिव - कर्म भिन्न है और उसका सम्बन्ध अनादी से है.
Tuesday, May 20, 2008
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1 comment:
Good explanation... Thanx
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