Thursday, May 29, 2008

मई २८ नवीन कर्म बंध

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कर्म अनादिकाल से चले आ रहे हैं पुराने कर्म का क्षय हो जाता है और नए कर्म बंध जाते हैं अब नए कर्म क्यों बंधते है यह देखना है ज्ञानावरण, दर्शानावरण व अंतराय के कारण नए कर्म नही बंधाते है, नए कर्म सिर्फ़ मोहनीय कर्म की वजह से ही बंधते हैं जीव का स्वभाव ज्ञान दर्शन व वीर्य है ज्ञानावरण कर्म के उदय से जीव के ज्ञान का घात होता है, दर्शानावरण कर्म से जीव के दर्शन गुण का घात होता है और अंतराय कर्म से जीव के वीर्य गुण का घात होता है लेकिन इनके उदय से नए कर्म का बंध नही होता है इनके क्षयोपषम होने पर जीव का स्वभाव प्रकट होता है विभाव प्रकट नही होता है मोहनीय के उदय से तो विभाव ही प्रकट होता है अतः उसी से कर्म का बंध होता है

1 comment:

Vikas said...

Nice short summary.
Can someone please explain - क्षयोपशम क्या होता है?