Chapter: पहला अधिकार
Page#: 20
Paragraph #: 2,3,4,5
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Summary:
सही विकल्प चुनिए -
1. धर्म के ध्यान रूपी महान अंग की प्राप्ति करने के लिए (सबसे) पहले जरूरी है -
a) उपवास b) काय क्लेश c) स्वाध्याय d) संयम
Ans. - c) स्वाध्याय
2. आगम कहते है -
a) आप्त के द्वारा कहा हुआ b) गणधर के द्वारा गूँथा हुआ c) मुनिराजों के द्वारा कहा हुआ d) सभी
Ans. - d) सभी
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए -
1. उत्तम क्षमादि लक्षण, देवपूजादि तथा सामायिक आदि आवश्यक, अहिंसादि व्रत पालन, स्वाध्याय, ध्यानादि तप तथा दीक्षा आदिक सभी ___ के अंग है ।
Ans- (धर्म)
2. कर्म के-शरीर के संसार रूपी जेल में से निकलने का ना तो कभी सोचे ना उसके लिए कुछ अभ्यास-प्रयास ही करे, उन्हें ______ कहा जाता है !
Ans- ( अभागा)
सही गलत बताइए -
1. ‘… आगमचेट्ठा तदो जेट्ठा ॥’ इस गाथा में प्रथम आगमज्ञान को ही करने योग्य (उपादेय) कहा है ।
Ans- (सही)
2. जो सहजता से गुरु मिलने पर जिनवचनों को सुनता है तथा जो संसार से भयभीत है, उन्हें सुभट कहा है ।
Ans- (गलत)
एक शब्द में उत्तर दीजिए -
1. एक ऐसा रत्न जिसके द्वारा (मन में) चिन्तित सभी वस्तुओं की प्राप्ति होती है - _____
Ans- (चिन्तामणी)
2. इनको स्नातक (भी) कहा जाता है - _____ ।
Ans- (अरिहंत)
एक वाक्य में उत्तर लिखिए -
1. अभागे के होनहार का ही विचार करके अपने को क्या करने लायक है ?
Ans- अभागे के होनहार का ही विचार करके अपने को समता रखने लायक है।
2. संसार से निकलने के लिए 4 आवश्यक क्या है ?
Ans- संसार से निकलने के लिए 4 आवश्यक हैं - तत्त्वज्ञान, तत्त्वविचार/तत्त्वचिन्तन, तत्त्वनिर्णय, तत्त्वानुभव ।
संक्षेप में उत्तर दीजिए -
1. अभाग्य की महिमा कैसे बतलायी गई है ?
Ans-
a) बिना प्रयास किये, अपनेआप ही, चिन्तामणि (जैसा बड़ा दुर्लभ) रत्न देखने का मौका मिल जाने पर भी जो दरिद्री उसको देखें तक नहीं,
b) जिसका पान करने पर व्यक्ति अमर हो जाए, रोगी शरीर भी सुन्दर हो जाए, ऐसा दुर्लभ जो अमृत, उसको पीलाने पर भी जो कोढ़ी उसको चखे तक नहीं,
ऐसे बड़े दरिद्री तथा कोढ़ी के उदाहरणों के माध्यम से अभ्याग्य की महिमा बतलाई गई है ।
2. दरिद्री और कोढ़ी का उदाहरण देकर वास्तविक किसे अभागा कहा जा रहा है ?
Ans-
संसाररूपी अटवी से निकलने का कोई रास्ता ही नहीं नज़र आ रहा है, ऐसे संसार से पीड़ित व्यक्ति को, जिनवाणी का योग मिलने पर तथा जिनेन्द्र परमात्मा का संग मिलने पर भी, अगर वो उसका अभ्यास ही न करें, भगवान को न जाने और नहीं उनका स्वरूप माने, उसे ही अभागा कहा गया है ।
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