हम जम्बुद्वीप के भरत क्षेत्र मे रहते है. इस भरत क्षेत्र मे वर्त्तमान मे चौबीस तीर्थंकर - धर्मं तीर्थ के नायक हुए . ऋषभ, अजित, संभव, अभिनन्दन, सुमति, पद्मप्रभ, सुपार्श्व, चंद्रप्रभु, पुष्पदंत, शीतल, श्रेयांश, वासुपुज्य, विमल, अनंत, धर्मं, शान्ति, कुन्थु, अर, मल्ली, मुनिसुव्रत, नमी, नेमी, पार्श्व, वर्धमान) उनके गर्भ,जन्म,तप(दीक्षा),ज्ञान(केवलज्ञान),निर्वाण कल्याणको मे इंद्र द्वारा पूज्य होकर अब सिध्धालय मे विराजमान है उन सब तिर्थंकरो को नमस्कार किया गया है
कल्याणक - कल्याण - सुख उत्पन्न करने वाले, भगवन के कल्याणको से हर जीव को सुख प्राप्त होता है.इस कल्याणको के समय नारकी के जीवो को भी सुख मिलता है.
विदेह्क्षेत्र मे वर्त्तमान मे केवलज्ञान सहित विराजमान तिर्थंकरो को नमस्कार किया गया है. (सिमंधर, युगमंधर, बाहु, सुबाहु, संजाकत, स्वयंप्रभ, वृषभानन, अनंतवीर्य, सुरप्रभ, विशालकीर्ति, व्रजधर, चंद्रानन, चंद्रबाहु, भुजंगम, इश्वर, नेमिप्रभ, वीरसेन, महाभद्र, देवयश, अजितवीर्य,)
परमेष्ठी पद मे उनको नमस्कार किया है, परन्तु वर्तमान मे विद्यमान है ये विशेषता से अलग नमस्कार किया है.
त्रिलोक मे जो अकृत्रिम जिनबिम्ब है (मेरुपर्वत, नन्दीश्वर द्वीप, देव के विमान मे जो चैत्यालय है आदि)
मध्यलोक मे जो विधिपूर्वक कृत्रिम जिनबिम्ब विराजमान है उन सबको नमस्कार किया है.
इन जिनबिम्बों के दर्शन से एक धर्मोपदेश के बिना अन्य अपने सर्व हित की सिद्धि होती है,जो सिद्धि तीर्थंकर - केवली के दर्शन से होती है वही सिद्धि अकृत्रिम जिनबिम्ब के दर्शन से होती है.( चैत्यालय है वो समवसरन के समान है, अरिहंत भगवान की मूर्ति - राग, द्वेष रहित है, शांत, सौम्यधारी भगवान के समान है)
केवली भगवान की दिव्यध्वनी द्वारा दिए गए उपदेश के अनुसार गणधर भगवन द्वारा रचे गए अंग, प्रकीर्ण, उनके अनुसार आचार्यो द्वारा रचे गए शास्त्रों, जो स्यादवाद चिह्नों से पहिचाने जाते है, न्याय मार्ग से अविरुध्ध है, प्रमाणिक है, तत्वज्ञान का कारन है, उपकारी है, उनको हमारा नमस्कार हो.
जिनवानी मे से जिस पद का १२ अंग मे समावेश नही हुआ उसका समावेश प्रकीर्ण मे हुआ. उसीको ही अंग बाह्य कहते है.- स्यादवाद - किसी भी अपेक्षा से कथन किया हुआ है (e.g.-व्यवहार की अपेक्षा से, नय की अपेक्षा से, द्रव्य की अपेक्षा से)
- न्याय मार्ग से अविरुध्ध - अन्य कोई मत जैन शास्त्रों का खंडन नही कर सकते,
- तत्वज्ञान का कारन - जीव को तत्त्वज्ञान उत्पन्न करने मे निमित्त है.
सामान्य विगत :
हर विदेह क्षेत्र मे एक मेरु पर्वत है.
1 विदेह्क्षेत्र मे minimum 4 तीर्थंकर सदा काल प्राप्त होते है
इसलिए 5*4=20 तीर्थंकर हमेशा होते है
एकसाथ maximum 170 तीर्थंकर हो सकते है
1 विदेह क्षेत्र मे 32 नगर है,
32 नगर मे एक तीर्थंकर हो सकते है. (32 * 5 = 160)
5 भारत क्षेत्र , 5 ऐरावत क्षेत्र मे एक तीर्थंकर (5+5=10)
160+10=170 तीर्थंकर एक साथ हो सकते है.
6 कार्य - असी, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प, विद्या, ये कार्य भोगभूमि मे नही होते.
विदेह क्षेत्र के देवकुरु, उत्तर कुरु भाग मे हमेशा भोगभूमि होती है
भरत क्षेत्र ,ऐरावत क्षेत्र मे काल(आरा) के अनुसार भोगभूमि, कर्मभूमि बदलती है
5 comments:
Liked your 'सामान्य विगत' :).
Question:
क्या सभी कल्याणकों के समय नारकी जीवों को सुख मिलता है?
Correction:
’सिद्ध भगवन की मूर्ति - राग, द्वेष रहित है, शांत, सौम्यधारी भगवन के समान है’ -- We have Arihant pratima most of the time, so this should be Arihant pratima.
According to me,सभी कल्याणको के समय पे नारकी जीवो को सुख मिलता है.
I thought the same.
At the time of all "kalyanak" Narki will feel temporary "shata".
Please clarify if there is any exception in this understanding.
Very good work: Keep it up.
No, it's only Janam kalyanak when naarki feel temporary saata/shaanti.
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