Wednesday, September 9, 2009

क्षमावाणी बिशेष व् निश्चयाभासी मिथ्यादृष्टि की भूल

Class Date:9/08/09
Chapter:7
Page#:197
Paragraph #:last second
Recorded version: No recording
Summary:
क्षमावाणी बिशेष:
प्र. क्षमावाणी का क्या मतलब है ? उ. मन वचन काय से अपने द्वारा हुए अपराध के लिए क्षमा मांगना तथा दूसरो को क्षमा करना | प्र. क्षमावाणी पर्व आखिर में ही क्यों मनाया जाता है? उ. पर्युषण पर्व में तप तथा विशेष स्वाध्याय पूजा से कषायो की मंदता हो जाती है , विशेष विशुद्धि बनती है जिससे हम मन, वचन काय से क्षमा मांग सकते है तथा कर सकते है | प्र. गलतियाँ क्यों होती है ? उ. १. राग-द्वेष-मोह अर्थात कषायों के कारण से | २. अज्ञान के कारण से हम जो स्व तथा पर के प्रति कषाय करते है, स्व तथा पर के प्रति अज्ञान के लिए क्षमा वाणी करते है क्योंकि इन सब पापों, व्यसनों आदि के कारण जो दुःख भविष्य में होगा वो तो अलग ही बात हा किन्तु वर्तमान में उसके कारण स्न्क्लेषित होकर जीव अवश्य दुखी होता है |
तो हम इसी भावः के नहीं अपितु अभी तक सारे भावो में कृत करीत अनुमोदना से जो गलतियाँ हुई हैं उन सब के लिए क्षमा मंगाते और करते है | * जो व्यक्ति स्व को नहीं जनता वो पर को कैसे जानेगा ? जब तक वह यह बात विचार नहीं करेगा तब तक वह वास्तविक रूप से क्षमाप्रार्थी कैसे हो सकता है ? * क्षमा के लिए भी ३ बातें जरुरी है : क्षमा माँगने वाला, क्षमा करने वाला तथा ये बताने वाला की ये गलती हुई है | इस तरह तो क्षमा भी इनके आधीन हो गई | वास्तव में तो क्षमा स्वाधीन होना चाहिए क्योंकि वह आत्मा का स्वभाव है और स्वभाव पराधीन नहीं हो सकता , तो स्वाभाविक रूप में तो वह आत्मा में कषाय और अज्ञान मिटे तो वह वास्तव में उत्तम क्षमा है |
जब हम किसी को क्षमा करते है तो बाद में वह गलती पुन: याद नहीं आना चाहिए | * क्षमा करने का ये मतलब नहीं है की कोई हमसे क्षमा माँगने आएगा तो ही हम उसे क्षमा करेंगे, हमारी विशुद्धि ऐसे बनही चाहिए की चाहे कोई क्षमा माँगने आये या न आये मैंने तो अन्तरंग से उसे क्षमा कर दिया है क्योंकि वास्तव में हिसा तो यही हो रही थी | * क्षमा : क्रोध के आभाव को क्षमा कहते है, किन्तु उत्तम क्षमा में मात्र क्रोध के कारण गलती या क्रोध का अभाव क्षमा नहीं है, सभी कषाय तथा अज्ञान के कारण जो गलती हुई उसे क्षमा करना उत्तम क्षमा है |
* क्षमा माँगने के लिए दिन या अवसर का इंतजार करने की भी जरुरत नहीं है, जैसे ही गलती कपट चले वैसे ही क्षमा कर देना
तथा मांग लेना |
revision of 7th chapter : इस अध्याय में जीव जिनवाणी को पढ़कर भी कैसे नई भूलें ग्रहण कर लेता है तथा किस प्रकार से वो भूले दूर की जा सकती है उसके बारे में बताया है | इसमें निश्चयाभासी मिथ्यादृष्टि का प्रकरण चल रहा हिया | निश्चय तथा व्यवहार धर्म के दो मार्ग है वह निश्चय को पकड़ लेता हिया किन्तु उसके सिद्धांतो को भी पूरी तरह से नहीं लगता अत: भूल करता है यहाँ यह बताया है | निश्चयाभासी मिथ्यादृष्टि के द्वारा होने वाली भूले: १. "अपने को सिद्ध समान मानता है |" ग्रंथो में आत्मा को सिद्ध तो स्वभाव से बतया गया है किन्तु यह वर्तमान में ही अपने आप को सिद्ध समान मान लेता है | २. "वर्तमान पर्याय में केवलज्ञान का सद्भाव मानता है |" केवलज्ञान तो हमें शक्ति रूप से है किन्तु वह उसका सद्भाव मानता है तथ कहता है की वह ज्ञानावरण के कारण जानने में नहीं आता है| ३. " आत्मा को रागादी रहित मानता है |" ४. "रागादी का निमित्त कर्म को ही मानता है |" ५. "कर्म -नोंकर्म का सम्बम्ध होते हुए भी नहीं मानता है |"

1 comment:

Vikas said...

Thanks for posting. Something to remember:
क्षमा माँगने के लिए दिन या अवसर का इंतजार करने की भी जरुरत नहीं है

1 Correction:
क्षमा के लिए भी ३ बातें जरुरी है : क्षमा माँगने वाला, क्षमा करने वाला तथा ये बताने वाला की ये गलती हुई है
Correction: 3. गलती बताने वाला नहीं, बल्कि गलती जिसके लिए क्षमा मांगी जाए.