Chapter: 7
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Paragraph #:4
Recorded version:
Summary: निश्चयाभासी मिथ्याद्रष्टि - गृहीत मिथ्यात्व
शास्त्र अभ्यास करावा छता मिथ्यात्व जाता नहीं है. उसके बारे में यहाँ बताया है.
मिथ्यात्व का नाश करना मुख्य बाबत है. राग आत्मा के अस्तित्व में है, परन्तु रागादी मेरे स्वभाव नहीं है.
REVISION:
- आत्मा कर्म का कर्ता नहीं है वो रागादिक भावो का कर्ता है. जिव रागादिक भाव करते है,
कर्ता - जो परिणामित होता है वो कर्ता है.
कर्म - जो परिणाम होता है वो कर्म,
क्रिया - जो परिणति है वो क्रिया है.- ६ द्रव्य कर्ता है. द्रव्य खुद के अनुसार परिणामित होता है. जिव में स्वयं में परिणामित होने की शक्ति है, अर्थात जिव स्वयं करता है. कोई दुसरे द्रव्य का कर्ता कोई नहीं होता, क्यूंकि दो द्रव्य में परिणमन नहीं होता. खुद की पुराणी अवस्था छोड़कर नई अवस्था ग्रहण करना वो परिणमन है.
- निमित्त हमेशा मोजूद होता है, परन्तु द्रव्य स्वयं कर्ता है. स्वयं परिणमन होता है. परिणमन होना यह उसका स्वभाव है, इसलिए सदाकाल खुद की शक्ति अनुसार द्रव्य परिणामित होता है.
- काल द्रव्य सदाकाल निमित्त है, जो हमेशा परिणामित होता है. कार्य होने में ५ समवाय हमेशा होते है.
- रागादिक आत्मा के है ऐसा नहीं माने तो दोष होता है, और रागादिक आत्मा के स्वभाव है ऐसा माने तो भी दोष है. कर्म आत्मा कर्ता है. कर्म आत्मा नहीं कर्ता है, द्रव्य कर्म आत्मा करता है ऐसा मानना, आत्मा भाव कर्म का कर्ता नहीं है ऐसा मानना यह दोनों गलत है.
- भाव कर्म आत्मा का नहीं है ऐसा माँने तो हम मानाने लगेंगे की हम तो कुछ करते नहीं है..जो कुछ हो रहा है वो तो कर्म कर रहा है. अगर मान ले की यह कर्म करना आत्मा के स्वभाव है - तो छोड़ना क्यों? वही तो आत्मा का स्वभाव है.
- तत्वादिक विचार करना यह उसका बुद्धि पूर्वक उपाय है. पुरुषार्थ से मोक्ष सिद्धि होती है. तत्त्व का विचार करना यह मूल कारण है. इसके सिवाय सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होती.
Adhikar 7 pg 197
Que: तत्वदिक विचार करना कर्म के क्षयोपशम आधीन है तो उसके लिए निरथर्क उद्यम क्यूँ करे?
Ans: ज्ञानावरणादिक सम्बन्धी क्षयोपशम है तुम्हारे, इसलिए अब तुम्हें उपयोग लगाने का उद्यम कराते है. असंगी जीवो के क्षयोपशम नहीं होते इसलिए उन्हें उपदेश नहीं देते. उनको मिथ्यात्व का तीव्र उदय है, समज ने की योग्यता नहीं है.
Que: मिथ्याज्ञान के उदय लिए क्या कारण है?? ज्ञानवरण और मिथ्यात्व.?
Ans; असंगी पंचेन्द्रिय जीवो को दोनों ही कारण है, ज्ञानवरण और मिथ्यात्व; संगी पंचेन्द्रिय के मोहनीय कारण निमित्त है.
Que: होनहार हो तो उपयोग लगे नहीं तो कैसे लगे? (होनहार - भवितव्यता)
Ans: अगर ऐसा ही श्रद्धान है तो कोई भी कार्य में उद्यम मत करो. खान - पान - व्यपरादिक में उद्यम करते है, और धर्मं की बात में होनहार की बात करते है. यह तो बताता है की अपना अनुराग यहाँ नहीं है, मनादिक से जूठी बात करते है.
- धर्मं से वीतराग भाव पेदा होना चाहिए, परन्तु खुद की जूठी विचारसरानी की वजह से वीतरागता पेदा नहीं होती.
- स्वयं महान रहेने को चाहते है, और खुद की भूल दुसरे के ऊपर ढोल देते है. अपना दोष कर्मादिक पर लगाता है. हम विषय कषाय रूप रहना चाहते है, इसलिए ऐसे बहाने बनाते है.
- देखादेखी में मोक्ष को उत्क्रुष्ट कहते है परन्तु खुद वो मनाता नहीं है, वास्तव में जिव धर्मं करना नहीं चाहता, परन्तु अनेक बहाना करता है , जो मोक्ष स्वरुप सच्चा सुख लगे तो वो बहाना नहीं करता.
- शास्त्रज्ञान से वास्तु का विपरीत श्रद्धान करते है, अपने को कार्य करना नहीं है परन्तु शास्त्रज्ञान से राग का पोषण करता है. ऐसे रागादिक होते हुआ भी अपने को राग रहित मानते है उसको मिथ्याद्रष्टि मानना.
Adhikar - 7 pg 198
- कर्म - नोकर्म के सम्बन्ध होते हुए भी आत्मा को निर्बंध मानते है. कर्म का बंधन प्रत्यक्ष देखा जाता है, अनेक अवस्था भी देखि है फिर भी ऐसा कैसे कहे की बंधन नहीं है? यदि यह बंधन नहीं हो तो मोक्ष मार्गी उसके नाश का घात क्यों करे?
- अपने को कर्म से निर्बंध माने वो मिथ्याद्रष्टि है,
3 comments:
Very nice post. Something to read again.
Couple updates:
कर्म आत्मा कर्ता है. कर्म आत्मा नहीं कर्ता है, द्रव्य कर्म आत्मा करता है ऐसा मानना, आत्मा भाव कर्म का कर्ता नहीं है ऐसा मानना यह दोनों गलत है.
Can you clarify what belief is wrong and what's right? It's somewhat unclear.
भाव कर्म आत्मा का नहीं है ऐसा माँने तो हम मानाने लगेंगे की हम तो कुछ करते नहीं है..जो कुछ हो रहा है वो तो आत्मा कर रहा है.
Correction: भाव कर्म आत्मा का नहीं है ऐसा माँने तो हम मानाने लगेंगे की हम तो कुछ करते नहीं है..जो कुछ हो रहा है वो तो कर्म कर रहा है.
Thanks for correcting..
कर्म आत्मा कर्ता है. कर्म आत्मा नहीं कर्ता है, द्रव्य कर्म आत्मा करता है ऐसा मानना, आत्मा भाव कर्म का कर्ता नहीं है ऐसा मानना यह दोनों गलत है...
कर्म आत्मा कर्ता है.. यह मानना गलत है..अगर हम माने की द्रव्य कर्म आत्मा करता है, और कर्म आत्मा नहीं कर्ता है, यह मानना गलत है...अगर हम माने की आत्मा भाव कर्म नहीं करता. आत्मा रागादिक भाव करते है, इसकी वजह से कार्माण वर्गणा कर्म रूप परिणामित होती है और द्रव्य कर्म आत्मा के साथ बंध जाते है... इसलिए ऐसा मानना की आत्मा द्रव्य कर्म करता है और भाव कर्म नहीं करता यह दोनों गलत है.
If anything wrong, Please correct me. I have updated the correction.
Thanks for the update.
To summarize:
ऐसा मानना गलत होगा:
- द्रव्य कर्म आत्मा करता है,
- भाव कर्म (राग-द्वेष) आत्मा नहीं करता है.
ऐसा माना ठीक है की :
- द्रव्य कर्म आत्मा के भावो के निमित्त से होते है, पर आत्मा उनका कर्ता नहीं है.
- भाव कर्म आत्मा स्वयं करता है, उन रूप परिणामित होता है, अतः आत्मा रागादिक रूप भाव कर्म का कर्ता है.
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