Wednesday, March 18, 2009

कारण - कार्य संबंध [जीव - अजीव तत्व संबंधी भूल]

Class Date: 17th March
Chapter: 4th
Page#: 80
Paragraph #:
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Summary:
कार्य - वस्तु का परिणमन [नैमेत्तिक/उपादेय]
कारण - वस्तु की उत्पादक समग्री

निमित्त कारण - संयोगरूप कारण
अ) उदासीन निमित्त - इच्छाशक्ति से रहित, निष्क्रिय द्रव्य [सर्व धर्म, अधर्म, आकाश, काल]
ब) प्रेरक निमित्त - इच्छावान व क्रियावान द्रव्य
उपादान कारण - जिसमें कार्य हो, द्रव्य की कार्य रूप परिणमित होने की शक्ति
अ) त्रिकाली उपादान - द्रव्य रूप/जिस द्रव्य में कार्य हो, वस्तु की सहज शक्ति
ब) अनन्तरपूर्वक्षणवर्ती उपादान - पर्याय रूप/ त्रिकाली उपादान के कार्य से एक समय पहले वाली पर्याय

निमित्त (जीव के परिणामों की अपेक्षा) :-
अन्वयव्यतिरेक = यदि ये निमित्त है तो कार्य होगा ही, नहीं तो नहीं होगा। जैसे कर्म
आश्रयभूत = इसका आश्रय पाकर कार्य हुआ, इसके होने पर वो कार्य हो ही ये जरूरी नहीं है । जैसे राग द्वेष किसी के आश्रय से हो ।

कार्य के होने में ५ समवाय:-
१) स्वभाव = त्रिकाली उपादान
२) काल = नियति
३) निमित्त= निमित्त कारण
४) पुरुषार्थ= अनंतरपूर्वक्षणवर्ती उपादान
५) भवितव्यता/होनहार

page 80 : जीव अजीव में निमित्त नैमेत्तिक सम्बन्ध के उदाहरण :--
१. जीव को ज्ञान इंद्रिय मन से हुआ।
२. बोलने में
३. गमनादि में (आत्मा के प्रदेशों के हिलने से शरीर हिला)
४. बिना इच्छा के हिलना डुलना (शरीर के बिना इच्छा हिलने से आत्मा के प्रदेश भी हिलते हैं)
५. जीव के कषाय भाव से शरीर की चेष्टा उनके अनुसार हो जाती है (जैसे क्रोध में आंखों का लाल होना)
६. शीत, उष्ण आदि शरीर की अवस्थाओं से स्वयं सुख दुख मानता है।
७. शरीर के परमाणुओं के मिलने बिछुडने से, अवस्था पलटने से, स्थूल, वृद्ध, बाल आदि अवस्थाओं के अनुसार आत्मा के प्रदेशों का संकोच विस्तार होता है।
८. शरीर की अपेक्षा गति, कुल आदि होते हैं।

1 comment:

Shrish Jain said...

Very well summarized.

Just one typo: कारण = वस्तु(<-- this should be 'kaarya') की उत्पादक समग्री