Thursday, March 5, 2009

अधिकार 4, मिथ्यादर्शन का स्वरूप

Class Date: March 4, 2009
Chapter: अधिकार 4, मिथ्यादर्शन, ज्ञान चारित्र का निरुपण
Page#: 76
Paragraph #: 1st
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Summary:

संसार के दुःखों का मूल कारण मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र है.... चौथे अधिकार में इनके स्वरूप का वर्णन किया है।

-> किसी कार्य के होने में २ प्रकार के कारण होते हैं:-
१) साक्षात कारण= किसी कार्य के होने में तत्कालीन कारण है, उसी समय उसका कारण पैदा कर रहा है, जो उसको अभी कार्य रूप परिणमित कर रहा है।
२) परम्परा कारण= ये कारण का कारण है।

प्र० जीव के संसार में अटकने के कारण क्या क्या है?
उ० ये जीव संसार में अटका हुआ है और उसका साक्षात कारण मिथ्याचारित्र है, जो कि कषाय सहित प्रवृत्ति है वही संसार में अटकने का साक्षात कारण है। उस मिथ्या चारित्र की परंपरा को बनाये रखने के लिये मिथ्यादर्शन और मिथ्याज्ञान पीछे से सहायता करते हैं, वो संसार में अटकने के परम्परा से कारण है।

प्र० मिथ्यादर्शन क्या है?
उ० दर्शन मोह के उदय से हुआ जो अतत्वश्रद्धान है, वो मिथ्यादर्शन है।

प्र० मिथ्याज्ञान क्या है?
उ० प्रयोजनभूत जीवादि तत्वों को अयथार्थ जानने का नाम मिथ्याज्ञान है। प्रयोजनभूत अर्थात जिनसे हमारा प्रयोजन सिद्ध हो, हमारा प्रयोजन तो दुख का नाश और सुख की प्राप्ति, तो प्रयोजनभूत जैसे जीवादि ७ तत्वों को जानना आदि। अयथार्थ अर्थात जो यथार्थ नहीं है, अर्थात जो जैसा है वैसा ना जाने, कम जाने, या संशय के साथ जाने, या अधिक जाने।

प्र० मिथ्याचारित्र क्या है?
उ० चारित्र मोहनीय के उदय से जो कषाय भाव होता है, वो मिथ्याचारित्र है।

मिथ्यादर्शन का स्वरूप:-

--> कर्म का सम्बन्ध जीव के साथ अनादिकाल से है, पुराने कर्म झडते जा रहे हैं और नये कर्म लगते जा रहे हैं, इस प्रकार कर्म का सम्बन्ध अनादि से भी है और सादि से भी। अनादि से तो कर्मबंध रूप अवस्था है, सादि से ये है कि जो कर्म अभी लगे हुए हैं वो अनादि से नहीं हैं, वो सादि से हैं किसी न किसी समय वो कर्म बंधे थे।
--> तत्वों मे जो श्रद्धान का दोष है, वही मिथ्यादर्शन है।

प्र० तत्व क्या है??
उ० तद्‍+ त्व । तद्‌ अर्थात जो श्रद्धान करने योग्य अर्थ अर्थात ७ तत्व आदि, उसका भाव-स्वरूप।

--> दर्शन शब्द के २ अर्थ होते हैं:- सामान्य अवलोकन और श्रद्धान। यहां पर दर्शन शब्द का अर्थ श्रद्धान लिया है। तो सच्चे देव-शास्त्र-गुरु को जान लिया और जानने के बाद ये श्रद्धान कि ये ही सच्चे हैं, वो श्रद्धान कितना हुआ, यदि १००% हुआ तो सम्यक श्रद्धान और यकि कम ज्यादा हुआ या नहीं हुआ तो वो सब मिथ्या श्रद्धान हुआ।
--> श्रद्धान ही संसार मोक्ष का कारण है। यदि मिथ्या श्रद्धान हो तो संसार का और यदि सम्यक श्रद्धान हो तो मोक्ष का कारण है। --> मिथ्यादर्शन = जैसा वस्तु का स्वरूप नहीं है वैसा मानना और जैसा है वैसा ना मानना, ऐसा विपरीत अभिप्राय।
--> प्रतीति अर्थात ’ऐसा ही यह है’, जो निर्णय रूप है वही प्रतीति है।

प्र० सर्व पदार्थ का यथार्थ श्रद्धान तो तभी हो जब यथार्थ भासित हो, और यथार्थ भासित तभी हो जब केवलज्ञान हो, तो केवलज्ञान हुए बिना सम्यकदर्शन कैसे हो या मिथ्यादर्शन कैसे छूटे?
उ० संसार में २ तरह के पदार्थ हैं:- १) प्रयोजनभूत, २) अप्रयोजनभुत। तो अप्रयोजन भूत पदार्थों को तो जानने की आवश्यकता ही नहीं है, क्योंकि वे तो ना तो संसार और ना ही मोक्ष में कारण हैं। हमें तो सिर्फ़ प्रयोजन्भूत पदार्थों का ही श्रद्धान करना है, तो ही मिथ्यादर्शन का त्याग होगा, अतः उसके लिये पूरे संसार को जानने की आवश्यकता नहीं है, अतः मिथ्यादर्शन के त्याग के लिये केवलज्ञान की आवश्यकता नहीं है। हमें तो सिर्फ़ प्रयोजनभूत ७ तत्व, ९ पदार्थ, ६ द्रव्य आदि को ही जानना/ श्रद्धान करना है, उन प्रयोजन्भूत तत्वों को जानने के निमित्त/ साधन कई हो सकते हैं, जैसे आगम से, या मुनिराज के दर्शन से आदि।

--> ज्ञानावरण कर्म ज्ञान की शक्ति को नियंत्रित करता है, इससे ये होगा कि प्रयोजनभूत या अप्रयोजन्भूत पदार्थों को या तो कम जानेगा या अधिक जानेगा। दर्शनमोह कर्म प्रयोजनभूत पदार्थों में हमारे श्रद्धान को मलिन करता है, जिससे संसार मार्ग बढता है, मोक्ष की ओर रुचि नहीं हो पाती।

1 comment:

Vikas said...

Nice post. Thanks for scribing.