Thursday, February 5, 2009

चार फ़रवरी - साता असाता कर्मोदय से सुख/दुख

Class Date: 02/04/09
Chapter: 3
Page#: 59
Paragraph #: 1
Recorded version: 02-04-09_Chap3_KarmSeDukh#26.mp3
Summary:
सम्यकद्र्ष्टी और मिथ्याद्र्ष्टी के परिणाम समान होने पर दोनों के कर्म बंध समान नहीं हैं । सम्यकद्र्ष्टी के कर्म-बंध कम स्थिती-अनुभाग के होंगे [पाप-प्रक्रतियों में] ।
साता-असाता के उदय में कार्य की प्रव्रत्ति (बाह्य-पुरुषार्थ) होते देखी जाती है । पहले कई तर्के के द्वारा साता-असाता के उदय को टालने में, बनें रहने में, बाह्य-कार्य़ की असमर्थता दर्शाई थी । उससे पुरुषार्थ का निषेध नहीं किया था परन्तु बाह्य-पुरुषार्थ को असमर्थ-कारण सिद्ध किया था ।
परमार्थ से ’मैं साता असाता के उदय को टालने में असमर्थ हूं / बाह्य वस्तुओं के होने ना होने से सुख दुख का संबंध नहीं है’ ऐसा श्रद्धान होने पर साता-असाता के उदय में, कार्य करता हुआ भी, हर्ष-खेद के परिणाम नहीं होंगे ।

प्रष्ठ ५९ -
साता के उदय में वस्तु की प्राप्ती हो जाने पर भी दुखः कम नहीं हुआ । वस्तु के मिलने संबंधी इच्छा तो कम हुई मगर वस्तु को ज्यादा-ज्यादा / जल्दी-जल्दी कैसे भोगूं / बहुत मिल जाए / छूट ना जए - यह इच्छा / आकुलता (मोह के सहारे) चालू हो गई । बहुत बार तो वस्तु के मिल जाने पर अब किसी और वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा से दुखी होता है । सारांश में - साता के उदयवश संपूर्ण रुप से वस्तु की प्राप्ती होने पर भी मोह-वश दुखी ही रहता है ।
असाता का उदय होने पर उसको प्रयत्न-पूर्वक शमन करने पर अपने आपको सुखी मानता है । जैसे - भूख लगने पर खाना खाकर अपने को सुखी मानता है या रोग होने पर दवा द्वारा रोग को दूर करता है और रोग दूर होने पर खुद को सुखी मानता है । कुछ काल बाद फ़िर उसी भूख / रोग से दुखी होता है फ़िर उपाय करता है । दुखी होने पर, प्रयत्न पूर्वक, बाद में दुख दूर होने पर खुद को सुखी मानना - यह तो रोग का प्रतिकार है, सुख मानना तो स्पष्टतः भ्रम है । सुख तो तब हो जब भूख / रोग कभी हो ही ना .. मगर उसका उपाय नहीं करता ।
साता का उदय हमेशा नहीं रहता । औसतन असाता का उदय साता से बहुत ज्यादा पाया जाता है । साता की मुख्य्ता स्वर्ग और भोग-भूमि में ज्यादा है । कर्म-भूमि, तिर्यंच और नरक में असाता की ही मुख्य्ता है ।
साता-असाता के पक्ष-विपक्ष के उपाय इन कारणों से झूठे हैं -
अ) उपाय अपने आधीन नहीं है
ब) साता के उदय के समय में आकुलता-वश दुखी होता है
स) सुख के लिये वियोग की आवश्यकता है
द) साता का उदय लगातार नहीं पाया जाता

वही वस्तु भिन्न-भिन्न व्यक्तियों को मिले तो परिणामॊं में समानता नहीं देखी जाती । भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में वही वस्तु वही जीव को मिले तो भी परिणामों में समानता नहीं देखी जाती । इससे सिद्ध होता है कि बाह्य-सामग्री से सुख दुख होता है - ऎसी मान्यता मिथ्यात्व है ।

1 comment:

Vikas said...

बहुत बढ़िया. summary post करने के लिए धन्यवाद.

एक प्रश्न: "साता-असाता के उदय में कार्य की प्रव्रत्ति (बाह्य-पुरुषार्थ) होते देखी जाती है । " इसका क्या तात्पर्य है? साता असाता के उदय में सुख दुःख का अनुभव बाह्य पदार्थो के सम्बन्ध से होता है, कार्य प्रवृत्ति का होना से क्या अर्थ ग्रहण करे?