Wednesday, October 21, 2009

Vrat ki Pratigyarup manyta me bhool

Class Date:10/21/2009
Chapter: 7
Page#: 204
Paragraph #:1st
Recorded version:
Summary:http://cid-52d749a4f28f4c05.skydrive.live.com/self.aspx/Public/MMP%20class/Chapter%207/10-21-2009%5E_Chap7-Nishchaybhasi%5E319.WAV

Some discussion out of the book:
- किसी भी कार्य को करनेसे पहेले उस कार्य का लक्ष्य ध्यान में रखना ज़रूरी है.
- जैसे पैसे, घर, स्त्री, पुत्र, अच्छी जॉब होने से सुख की प्राप्ति है, वैसे ही धर्मं करने से सुख की प्राप्ति है, इसलिए धर्मं करना ज़रूरी है, पर वास्तव में धर्मं करने के बाद आगे जा कर check करे की सही में सुख की प्राप्ति होती है? अगर नहीं तो उसमे कहा गलती है वह check करे. अगर धर्मं सर्वोत्रुष्ट है तो इसका मतलब है की उससे आगे कुछ नहीं, इसमें सुख मिलना चाहिए, पर अगर नहीं मिले तो check करे की कहा हम गलत है, कहा मान्यता गलत है, समज का अभाव है, विगेरा
- ज्ञानी पुरुषों ने कहा की सम्यक ज्ञान से सुख की प्राप्ति होती है तो उसके साथ ये गर्भित है की मिथ्यादर्शन से सुख की प्राप्ति नहीं है, तो वह दूर करने का प्रयास करे तो ही वास्तव में सुख की प्राप्ति होगी.

Now from book..
व्रत के संभंध में पंडितजी समजाते है की व्रत बंधनरूप नहीं है, ये मान्यता गलत है, क्योकि ये एक सहज प्रक्रिया है, और अगर ये न हो तो परिणाम अशुद्ध में ही लगे रहेंगे, परिणति और क्रिया दोनों साथ में होती है, स्वतंत्र नहीं.
Example: एक company ने आपना goal decide किया, तो उसकी सारी क्रिया उसी आस-पास होगी, और उसी कार्य की सिद्धि के लिए होगी, वैसे ही अगर हमारा goal धर्मं करके सुख प्राप्त करना है तो सारी क्रिया-मान्यता उसी लक्ष्य के आस-पास होगी, और जो हर एक क्रिया-मान्यता में check करने लायक है.

Que: परिणाम तो शुद्ध रखेंगे, क्रिया भी रोकेंगे पर व्रत के लिए प्रतिज्ञा नहीं लेंगे?
Ans: पंडितजी समजाते है की अगर भविष्य में वह क्रिया करने की भावना हो तो ही प्रतिज्ञा नहीं ली जाती.
Example : Exam में fail होने का डर हो तो exam नहीं दी जाती, पढाई तो पुरे साल करेंगे पर exam नहीं देंगे, क्योकि fail होने का डर है. वैसे ही, भविष्य में उस प्रवृति को करने की आशा है तो ही उसकी प्रतिज्ञा नहीं लेता, और जहा आशा है वहा राग है, और जहा राग है वहा अविरति का कर्मबंध होता है, इसलिए सिर्फ पढाई करने से या रात्रिभोजन का त्याग करने से वह कर्मबंध रुक नहीं जाता, क्योती अन्तरंग में भविष्य की आशा है और अपने व्रत के प्रति इतनी द्रढ़ता नहीं है,
- यहाँ रागभाव परिणाम में नहीं है अभिप्राय में है, .
- वहा परिणाम तो शुभ है की हिंसा नहीं करनी पर अभिप्राय नहीं बदला.
- बिना कार्य किये रागभाव से अविरति से बंधन हमेशा होता है, और राग दुःख का कारन है
- परिणाम चरित्ररूप है(belief),
- परिणाम है वह कर्म के उदय से होनेवाले राग-द्वेषरूप भावः
- और अभिप्राय श्रधानरूप है जो परिणाम के पीछे छुपा भावः/मान्यतारूप है, वह शुद्ध करना ज़रूरी है.
- और क्रिया है वह उससे होनेवाली क्रिया

-यहाँ क्रिया, परिणाम, और अभिप्राय तीनो में अंतर जानना ज़रूरी है. और उसका फल भी उसी तरह से है की क्रिया का फल 1%, परिणाम का फल 2%, और अभिप्राय का फल 98% है. यहाँ वर्तमान में सिर्फ शुभ भावः है जिससे पुण्य कर्म बंध होगा, और बाह्य अनुकूलता मिलेगी पर अभिप्राय में मिथ्यात्व आभी भी मौजूद है, जिससे अनेक प्रकार की विपरीतता होगी.
Example: जैसे विवाह करे तो एक स्त्री को छोड़ कर बाकि का ब्रम्हचर्यव्रत, so it is like closing the open door for future in any condition by limit.

यहाँ पंडितजी यही समजाते है की प्रतिज्ञा लेने योग्य है ये मान्यता ठीक करो, प्रतिज्ञा लो नहीं लो ये future की बात है, और अगर क्रिया-परिणाम- अभिप्राय शुद्ध हो पर जब व्रत कदाचित न ले तो जब भी अवसर मिलेगा वह कर लेगा,
Example: साथ-साथ रहे 4-5 साल पर शादी नहीं करेंगे और बंधन में नहीं पड़ेंगे, इसका मतलब भले अब तक ठीक रहा पर परिणाम सदाकाल एक जैसे नहीं रहेते और जब अवसर मिलेगा अलग हो जाएंगे.
- हमारे शास्त्र में व्रत और उस व्रत के प्रायश्चित की विधि बताई है.
- व्रत धारण करने पर ही पाचवे गुनस्थान पर पहुच पाता है.

1 comment:

Vikas said...

Thanks for sending. Very nicely explained.

Couple explanations:
जैसे पैसे, घर, स्त्री, पुत्र, अच्छी जॉब होने से सुख की प्राप्ति है, वैसे ही धर्मं करने से सुख की प्राप्ति है
जैसे बाह्य पदार्थों से सुख की प्राप्ति है, वैसे ही धर्म से नहीं है. क्योंकि लौकिक सुख तो सन्योगादिक आधीन है, जबकि धर्म संबंधी सुख स्वाधीन है. और इनके स्वरूप मे भी अन्तर है. यहा पर यह बात कह रहे थे की जैसे लौकिक सुख की प्राप्ति के लिए हम दौड़ते है, वैसे ही धर्म से सुख समझ कर उसके लिए सम्यक पुरुषार्थ करना योग्य है.

2. क्रिया परिणाम अभिप्राय का फल जो कहा है, वह मोटा मोटा कथन है, सुक्षम कथन नहीं जानना. इनका बटवारा इसी प्रकार का है, परंतु exact यही % है, वैसा नहीं.

Gandhiji also had similar understanding of the vrat/pratigya. It's available from his biography at: http://wikisource.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF_-1