Tuesday, September 22, 2009

Notes from class of Sep 22, 2009

Class Date: 9/22/09
Chapter: 7
Page#: 199
Paragraph #:
Recorded version: http://cid-52d749a4f28f4c05.skydrive.live.com/self.aspx/Public/MMP%20class/Chapter%207/09-22-2009^_Chap7^_Nishchayabhasi12.WMA
Summary:
9/22/09

Chapter 7 pg 199

Revision from last class:

Aatma ke sambandh mein nischay nay ka abhas jisme paya jata hai, usko kaise aatma samajh mein aata hai (manyata hai) vaisa humne padha- isme aacharan ke bare mein discussion nahi kiya. Yeh bhed, antarang ke abhipray ke basis par kiye hai. Aage acharan ke basis par (aur jiske mul mein nischayabhasi manyata hai) aise jeev ka discussion karenge.

Pardravya ka karta aatma nahi hota- ek dravya dusre dravya ka kuch nahi kar sakta. Apne parinam/ vikalp ka karta atma hai. Aur jab in par bhaav/ par dravya se drushti hat jati hai aur jab isme bhi bhed vigyan apply karte hai aur samajhte hai ki jeev sirf jaanne ka karta hai (gyata hai) tab, baaki sab kashay aadi vibhav hai, svabhav nahi, tab atma anubhavan ki aur badhte hai. Par dravya ke saath mera sirf nimit naimitik sambandh hai, karta karm sambandh nahi aisa samajhna chahiye.

Vastu ka parinaman apne aadhin nahi, vo uski yogyata ke anusar parinaman karega. Achetan padartho par bhi hamara control nahi, ve bhi apni yogyata ke anusar parinaman karenge. Jo vastu dravey (flow/ change kare) uska naam dravya hai- matlab har dravya mein parinaman karne ki shakti hai. Jiske karan do dravyo mein karta karm relation applicable nahi hota- sirf ek dravya mein hi hota hai, kyonki karta ki paribhasha hai, jo parinamit hota hai. Jo karya rup hua hai vo khud ki shakti se hua hai, isliye vahi karta hai. Mitti ghadey rup hoti hai (nimit ki apeksha se kumhar karta kaha jata hai, parantu vastav mein mitti hi karta hai)

Pg 199:

Shuddh avastha matlab par ke bhaavo se bhinn aur khud ke bhaavo se abhinn. Dravya apeksha to shuddh pana hota hi hai. Aupaudhik bhaav jab hat jaate hai, tab paryay mein shuddh maan sakte hai. Samaysar vyakhya mein kaha hai ki aatma pramat/ apramat nahi hai- jitney par dravya bhaav hai un sab se jab bhinn ho, aisi avastha shuddh hai. Mein ek gyayak maatra hu (paryay bhed, kashay, par dravya ke bhaav sab se bhinn), aisa hone par shuddh pana hota hai. Dravya apeksha ki shuddhta ka chintan vo saadhan hai aur paryay bhaav mein shuddhta vo sadhya hai. Yahaa, Pramat/ apramat are based on gun sthanaks (gun sthanaks paryay gat bhed hai).

Vibhaktiya:
Karak: Karya mein sahakyak hote hai
Karta: Jisne kaam kiya
Aadhar: Jisme kiya
Karma: Jo karya hua
Apadan: Jisme se kiya
Sampradan: kiske liye kiya
Sadhan: Jiske dvara kiya

Yeh bhinn shat karak hai. Yeh aatma mein bhi shat karak lagte hai. Karta/ Karma do dravyo mein nahi lagte, isliye sab aatma mein bhi lagte hain. Abhed, nirmal anubhuti ka naam shuddh hai (paryay apeksha)

Dravya se samanya swarup avlokan karna aur paryay mein avastha vishesh avdharan karna isse smayak darshan hota hai. Kyonki sacche avlokan bina samyak darshan nahi hota. Dravya ka chintvan karke paryay ko shuddh karna aur vartman sthiti ka avdharan karna (avdharan=vichar/nirnay)

Vastu ka swarup theek nahi samajhne se bahya pravarti/ avastha mein kya bhule hoti hai:

Nischayabhasi ki swachandta aur uska nishedh:

Raag dvesh jaise mite vaisa shraddhan, (bure hai aur mitane layak hai aisa shraddhan karna), gyan aur acharan karna yeh moksh marg hai. Lekin nischayabhasi ka aisa to vichar hi nahi- vo to keval apne shuddh anubhav (aabhas) mein hi samyaktva manta hai, jisse raag dvesh mitte ho aise sabhi sadhan (shastra abhyas, pujan, tapasya, vrat aadi) ka nishedh karta hai, to samyak drashti kaise hua?

Shastrabhyas: Yadi yeh nirarthak ho to muniyo ko bhi 2 mukhya kaam kahe hai- dhyan ya adhyayan- jab dhyan mein upyog nahi lage, tab adhyayan karne ko kaha hai kyonki usse tatvo ko vishesh jaanna hota hai aur usse samyak darshan gyan nirmal hota hai. Isliye yeh nirarthak nahi.

Wednesday, September 16, 2009

Nishyabhasi mithayadrasti - Paryay ki apeksha ko dravya me lagana

Class Date: 09/16/2009
Chapter: 7
Page#:199
Paragraph #: nishcyabhasi
Recorded version:
Summary:http://cid-52d749a4f28f4c05.skydrive.live.com/self.aspx/Public/MMP%20class/Chapter%207/09-16-2009%5E_Chap7%5E_Nishchayabhasi11.WMA

Some discussion out of the book
द्रव्य = सर्व(त्रिकाल) पर्यायो के समूह को द्रव्य कहते है.
- इसमें ये जानना ज़रूरी है की सभी पर्याय जो बदल रही है वो द्रव्य की अपनी है में उसका कर्ता नहीं हु ये तो उसका स्वभाव है, जिससे जीव का कर्तापना दूर होता है.

समयसारजी के अनुसार "स्वातंत्रय करे उसे कर्ता कहते है", सहजरूप से जो हो सिर्फ उसीके हम कर्ता है, इसलिए इच्छा से जो कार्य करे उसके भी हम कर्ता नहीं है, क्योकि इच्छा के भी हम आधीन हो गये.
"हम सिर्फ प्रतिसमय होनेवाले ज्ञान के कर्ता है", बिना इच्छा के देखने जानने के कर्ता हो, कर्ता-कर्म सम्बन्ध परमार्थ: दो द्रव्य में नही लगता, वह व्यव्हार से बताया है. जो ज्ञाता स्वाभाव है उसी का सिर्फ कर्ता है
Jiv /Gyata




Krodh /maan Person X

इसमें जिव सिर्फ ज्ञाता है, की person X ने क्रोध किया/ मान किया/ उसका प्रतिक्रमण किया, वह सिर्फ ज्ञात भावः से देखनेवाला है. वह कर्ता नहीं है.
इसलिए जिव मात्र ज्ञाता है, और अज्ञान अवस्था में विकल्प(शुभ-अशुभ भावः) मात्र का कर्ता है.
example: कुम्हार घडा बनाता है तो उस पूरी process में कुम्हार मात्र घडा बनाने के विकल्प मात्र का कर्ता है, तो इसलिए वह कर्ता है, पर जो मिटटी में से घडा बना तो उसका कर्ता कुम्हार नहीं है.

This is a step by step process, at the
First stage: jiv shub-ashubh bav(rag-dvesh) bhav ka karta hai.
Secont stage: jiv suddh bhav kakarta hai

इसलिए जिव सिर्फ सुभ-अशुभ-सुद्ध विकल्प मात्र का कर्ता है इसको छोड़ कर किसीका नहीं.
Now in continuation to book..

Example: एक दोस्त को बीमारी में से बचने के लिए आप कितने व्याकुल होते हो, वो बच जाये उस बीमारी मेसे, वैसे ही अगर जिव सभी चीजों का कर्ता बना तो कितना व्याकुल हो जायेगा? और संपूर्ण दुखी ही रहेगा. इसलिए कहा है जिव परद्रव्य का कर्ता नहीं है.
- एक ज्ञानी स्वाभाव से खुद को शुद्ध आत्मा मानता है पर पर्याय अपेक्षा से नहीं, वहा निश्च्याभासी खुद को पर्यायरूप से भी शुद्ध मानता लेता है, एक अपेक्षा की बात दूसरी अपेक्षा में लगता है.
- यहाँ ज्ञानी कहे की में शुद्ध आत्मा हु वह अनुभवसिद्ध स्वाभाव से कही हुई बात है, वहा अज्ञानी कहे की में शुद्ध हु वह ये पर्याय में लगाकर मानता है की में शुद्ध आत्मा हु और कोई प्रयत्न नहीं कर्ता और मिथ्याद्रशती बनता है.
Example: एक डॉक्टर की पढाई कर्ता है तो उसे भी डॉक्टर कहते है, और दूसरा चार साल से प्रक्टिस कर रहा है उसे भी डॉक्टर कहते है, पर दोनों डॉक्टर में फरक है, अब जो पढाई कर रहा है वह आपने आप को डॉक्टर समज कर practice शुरू केर दे, तो वह ठीक नहीं है, इसी तरह अज्ञानी अपने आप को शुद्ध मानने लगे तो मिथ्यद्रष्टि कहा जायेगा.

Que: द्रव्य द्रष्टि से सुद्ध्पना किसे कहते है?
Ans: द्रव्य अपेक्षा से जिव अपने भावो से अभिन्न है और पर भावो से भिन्न है.
- पर भावो से भिन्नता तीन अपेक्षा से है.
१) बाह्य पदार्ध जो दीखते है वह भिन्न है.
२) शरीर भी मेरे से भिन्न है.
३) रागादी भावः जो विभावरूप है और ज्ञान, दर्शन, चरित्र, वीर्य, मतिज्ञान, श्रुत्ज्ञान, वगेरा एक एक गुण की द्रष्टि से भी में भिन्न हु, और
एक इस सभी गुणों का पिंड स्वरुप में हु(शुद्धता की द्रष्टि से कहा है - वहा individual गुण को शिर्फ़ गौण किया है) गुणों का निषेध नहीं किया है.

Que: पर्याय अपक्षा से सुद्धपना किसे कहते है?
Ans: औपदिक भावो का आभाव होना ये पर्याय अपेक्षा से सुद्धपना है, जैसे जैसे अशुद्धता दूर होती जायेगी शुद्धता प्रगत होती जायेगी.

Conclusion: इसलिए करने योग्य चिंतवन यही है, की परभाव से भिन्न रहकर सिर्फ ज्ञाता-द्रष्टा बनकर जानने का कार्य करना है. जैसे खाना खाते समय उसमे आशक्ति न करके उस भावः को परभाव मान कर सिर्फ ज्ञाता बन कर अगर खाना खाए तो राग नहीं होगा, और किसी के प्रति अरुचि हो तो उस भावः को भी परभाव माने तो उसके प्रति द्वेष नहीं होगा, ज्ञानी सिर्फ परभाव और स्वाभाव को जन कर उसमे भेद करने का पुरुषार्थ करता है, और परभावो से भिन्न रहने का कार्य करता है.

Tuesday, September 15, 2009

निश्चयाभासी मिथ्याद्रष्टि

Class Date: 15 September, 2009
Chapter: 7
Page#: 199
Paragraph #: 1
Recorded version:
Summary:

निश्चयाभासी भूल जैन शास्त्र पढ़कर भी होती है, मुख्यत्वे व्यवहाराभासी भूल सबकी दिखाई देती है, कभी कभी उभयाभासी भूल भी देखने में आती है. यह सब भूल ख़राब है, मिथ्या है. इसलिये उसको जानना जरुरी है. कोई ने कोई भूल तो हमेसा चलती रहेती है. कभी निश्च्याभासी भूल चल रही होती है या तो काची व्यवहाराभासी भूल चलती रहेती है. यह आभास हमेसा पाया जाता है जबतक सम्यक्त्व नहीं होता.


दो प्रकार के जिव होते है. कोई दुसरे का जीवन देखता है कोई अन्तरंग देखता है.

कोई ज्ञानी के जीवन को देखता है,व्रत- पूजा करना चाहिए, रत्रिभोजन नहीं करना चाहिए, आदि कार्यो मोक्ष रूप है ,वो कार्यो करके उसको लगता है की उसको लगता है की में मोक्ष का मार्ग साध रहा हु.

दूसरा जिव ज्ञानी के अंतरंग को जानकर उसके जैसा भाव करता है, (e.g.में सिद्ध सामान हु ऐसा सोचता है) और मनाता है की मेरा ऐसा सोचने से मेंरा मोक्ष मार्ग सध रहा है. मुझे यही करना है.

परन्तु दोनों ही सम्यक रूप से उसे नहीं जानते. जब अंतरंग वाला सोचता है तब वो बहिरंग साधन को धर्मं नहीं मानते. वो मन लेता है की धर्मं तो स्वरुप में लीन होना, स्वरुप का चिंतन करना है. यह भूल आचरण सम्बन्धी नहीं है, यह अभिप्राय की भूल है. किसी के क्रिया से भूल नहीं कहते है पर उसके मनमे क्या अभिप्राय है उसके ऊपर से उसकी व्यवहाराभासी या निश्चयाभासी भूल है यह पता चलता है. यह भूल शाश्त्र पढने से भी नहीं होती, पर लोगो की मान्यता है की समयसार पढने वाला निश्च्याभासी या व्यव्हार के शास्त्र पढने वाला व्यव्हाराभासी है.

कोई भी वस्तु भेदाभेदात्मक है, उसके पर्याय से अनेक भेद होते है और एक पिंड रूप एक वस्तु भी होती है. आत्मा भी एक पिंड रूप अभेद है, और आत्मा में भी गुण - पर्याय का भेद है. उसके अनेक अलग - अलग गुण है और गुणों से मिलकर अखंड आत्मा बनता है.

Que: अभव्य जिव में शुद्ध / अशुद्ध पर्याय कैसे होती है ?
Ans: हर गुण अशुद्ध नहीं है, काफी सारे गुण शुद्ध ही होते है. अगुरुलघुत्व गुण के निमित्त से षट-गुणी हानि वृद्धि होती है, जो की शुद्ध परिणमन है.( अविभाग प्रतिछेदो का कम - ज्यादा होना शुद्ध पर्याय है ) शुद्ध पर्याय होने की शक्ति अपेक्षा - उनमे भी केवलज्ञानावरण का उदय है, यह बात अलग है की उनको केवलज्ञान होता नहीं है.

कोई जिव अपने आत्मा के शुद्ध अनुभवन के चिंतवन को ही मोक्षमार्ग जानकर संतुष्ट होता है - ऐसे मानाने वाले को पंडित जी प्रश्न करते है की यदि द्रव्य द्रष्टि से चिंतवन करते है तो द्रव्य तो शुद्ध - अशुद्ध पर्यायो का समुदाय है,( द्रव्य - गुणों की समस्त पर्यायो का समूह. ) तो शुद्ध ही अनुभव कैसे करते हो? वर्त्तमान पर्याय तो अशुद्ध ही दिखती है तो शुद्ध अनुभव कैसे करते हो ? और आगे सवाल करते है की शक्ति अपेक्षा मानते हो तो यह कहो की में सिद्ध होने योग्य हु, पर ऐसा मत कहो की में सिद्ध हु. इसलिए अपने को सिद्धारूप मानना भ्रम है.

क्यूंकि अगर तुम अपने को सिद्ध सामान मानते हो तो यह संसार अवस्था किसकी है ? अगर तुम्हे केवलज्ञान है तो यह मतिज्ञान किसके है? परमानन्दमय हो तो अब कर्त्तव्य क्या बाकि रहा? इसलिए अन्य अवस्था में अन्य अवस्था मानना (संसार अवस्था में सिद्ध अवस्था मानना ) भ्रम है.

Que: शास्त्र में शुद्ध चिंतवन का उपदेश कैसे दिया है?
Ans: द्रव्य अपेक्षा शुद्ध पना - परद्रव्य से भिन्न पना और अपने भावो से अभिन्न पना का नाम शुद्धता है. मेरे भावो के सिवाय जो भी भाव है वो मुझसे पर है.


  • बाह्य पदार्थ - घर, स्त्री, पुत्र आदि मेरे से भिन्न है

  • शरीर - शरीर पुदगल का है वो मेरे से भिन्न है

  • रागादिक परिणाम मेरे से भिन्न है क्यूंकि यह स्वाभाव भाव नहीं है, यह दूर करने योग्य है.

  • में दर्शनमय हु, में चरित्रमय हु, में चैतन्यमय हु, यह सब भावो को भी छोड़कर, पर्याय को गौण करके मै चैतन्य - चैतन्य ऐसे परिणामिक भावरूप मेरा स्वरुप है, इस में लीनता करना वो स्वाभाव से अभिन्न पना है. ( पर्याय के भेद को भी गौण करना है.)

पर्याय अपेक्षा शुद्ध पना - औपधिकभावो का आभाव होना शुद्ध पना है .कर्म के उदय से जो भाव होते है वो औपाधिक भाव होते है, जैसे वो भाव कम होते है उतनी शुद्धता बढाती जाती है.(इसमे यहा पर दर्शन - चारित्र मोह के उदय से होने वाली भाव ग्रहण करना. उनके अभाव होने पर पर्याय मे शुद्धता प्रकट होती है.)

द्रव्य शुद्ध है उसमे खराबी मिली हुई है, वो खराबी को अलग करके पर्याय शुद्ध करने के बाद द्रव्य की शुद्धता और मूल द्रव्य एक ही है. पर्याय की शुद्धि, द्रव्य को देखकर होती है. पर्याय द्रव्य का सहारा ले के शुद्ध होती है, द्रव्य त्रिकाल शुद्ध ही होता है. पर्याय में अशुद्धि होती है पर पर्याय की शुद्धि द्रव्य को देखकर होती है.

Thursday, September 10, 2009

Summary for 9/9/09 - Chapter 7

Class Date: September 9th, 2009
Chapter: 7
Page#:
Paragraph #:
Recorded version:
http://cid-52d749a4f28f4c05.skydrive.live.com/self.aspx/Public/MMP%20class/Chapter%207/09-09-2009^_Chap7^_Nishchayabhasi9.WMA

Summary:

We talked about that we should understand Mangalcharan. The main reason for this Sansar (here Sansar does not mean wife, son etc…, Sansar means the cause of rebirth) is Mithyattva. Whatever happens (even if we die), we should think how we can remove Mithathatv.

We discussed further about Nichayabhassi Mithadarshi. We discussed that Jiv and Karama are different from NichayNay but there is Nimit and Namitik relationship between them.

Then Nichayabhassi Mithadarshi argues that we should not get into thinking of (Vikalap) Bandth and Mukt because in Sashastra it is written that the Jiv who believes that he is with Bondage or Mukt is definitely Bandha Jiv.

Answer: The reason is that Jiv thinks about each Paryay, thinks about Karma and its result. For that person Muni says that you are thinking about Paryay Budhi all the time and not thinking about one Dhruv Atma or you are not focusing on Atma which is the cause of ultimate happiness. Vikas give good example for person who is getting married and if he is giving importance(Bhav) to all other relatives of future wife except his future wife. For that person people will advise him that please try focus or make your wife happy, and other relatives will be happy automatically. Same way Muni gives advice to NichayaAhabaski Mithadarshi that your aim (Laksh) should be Atma. Then we gave example of car – accelerator and break. Then we discussed that by looking at DravyaDarha, Jiv is Dhruv, but from Prayay it is changing. Then we discussed about Gun – we talked that Gun means which is in all places and in all Prayays. Then we gave example of river to compare with Atma. Like river flows, Atma has Parya but it remain same, similarly Atma remains same as GyanMay but its Prayay changes all time. So Parya Darshi se Anitya, but from Dharya Darshi se Nitya.

Then we discussed that in Jinvani there are many Nays and some place Acharya tells from Nishkaya Nay and some place Acharya tells from Varhay Nays depending upon person who is receiving the Updesh. Then we discussed that that this type of (NichayaAhabaski ) Mithadarshi does not understand thing in right context – for example "Jiv is Sidh Saman" that was from Dharya Drashti and Mithadarshi understood from Parya Darshi, "Jiv has Keval Kgyan" and "Jiv is without Karam-NoKarma" that was from Shakti point of view, this Mithadarshi understood from Parya Darshi. And list goes on.

Then we talked that this Mithadarshi thinks just by thinking about just having Sudhoupyog is Moksh Marg, but that person does not think that at the same time removal of Rag-Dersh is also needed. IOW, that person is happy just by talk of Sudhoupyog, but not doing anything toward that Sudhoupyog (removal of Rag-Dersh). Then we discussed that there are many cases in history that some people like Banarasidasji who started living in home like Muni (Nagna) by just thinking that the is Muni. So that sort of Mithadarshi does not put efforts to removal of Rag-Dersh. Then we discussed that SudhaAtma Anubh (realization of soul) does not happen without Seven Tatava's Sardhan. If anybody thinks otherwise, he is Mithadarshi. First person thinks Aashary and Bandh are cause of painful, then Samav, Nijara are cause of happiness and Moksh is ultimate happiness. So SudhaAtma Anubh is last step.

The last 10 minutes was little difficult to describe here and will be continue next lecture.
Sanjay Shah.

Wednesday, September 9, 2009

क्षमावाणी बिशेष व् निश्चयाभासी मिथ्यादृष्टि की भूल

Class Date:9/08/09
Chapter:7
Page#:197
Paragraph #:last second
Recorded version: No recording
Summary:
क्षमावाणी बिशेष:
प्र. क्षमावाणी का क्या मतलब है ? उ. मन वचन काय से अपने द्वारा हुए अपराध के लिए क्षमा मांगना तथा दूसरो को क्षमा करना | प्र. क्षमावाणी पर्व आखिर में ही क्यों मनाया जाता है? उ. पर्युषण पर्व में तप तथा विशेष स्वाध्याय पूजा से कषायो की मंदता हो जाती है , विशेष विशुद्धि बनती है जिससे हम मन, वचन काय से क्षमा मांग सकते है तथा कर सकते है | प्र. गलतियाँ क्यों होती है ? उ. १. राग-द्वेष-मोह अर्थात कषायों के कारण से | २. अज्ञान के कारण से हम जो स्व तथा पर के प्रति कषाय करते है, स्व तथा पर के प्रति अज्ञान के लिए क्षमा वाणी करते है क्योंकि इन सब पापों, व्यसनों आदि के कारण जो दुःख भविष्य में होगा वो तो अलग ही बात हा किन्तु वर्तमान में उसके कारण स्न्क्लेषित होकर जीव अवश्य दुखी होता है |
तो हम इसी भावः के नहीं अपितु अभी तक सारे भावो में कृत करीत अनुमोदना से जो गलतियाँ हुई हैं उन सब के लिए क्षमा मंगाते और करते है | * जो व्यक्ति स्व को नहीं जनता वो पर को कैसे जानेगा ? जब तक वह यह बात विचार नहीं करेगा तब तक वह वास्तविक रूप से क्षमाप्रार्थी कैसे हो सकता है ? * क्षमा के लिए भी ३ बातें जरुरी है : क्षमा माँगने वाला, क्षमा करने वाला तथा ये बताने वाला की ये गलती हुई है | इस तरह तो क्षमा भी इनके आधीन हो गई | वास्तव में तो क्षमा स्वाधीन होना चाहिए क्योंकि वह आत्मा का स्वभाव है और स्वभाव पराधीन नहीं हो सकता , तो स्वाभाविक रूप में तो वह आत्मा में कषाय और अज्ञान मिटे तो वह वास्तव में उत्तम क्षमा है |
जब हम किसी को क्षमा करते है तो बाद में वह गलती पुन: याद नहीं आना चाहिए | * क्षमा करने का ये मतलब नहीं है की कोई हमसे क्षमा माँगने आएगा तो ही हम उसे क्षमा करेंगे, हमारी विशुद्धि ऐसे बनही चाहिए की चाहे कोई क्षमा माँगने आये या न आये मैंने तो अन्तरंग से उसे क्षमा कर दिया है क्योंकि वास्तव में हिसा तो यही हो रही थी | * क्षमा : क्रोध के आभाव को क्षमा कहते है, किन्तु उत्तम क्षमा में मात्र क्रोध के कारण गलती या क्रोध का अभाव क्षमा नहीं है, सभी कषाय तथा अज्ञान के कारण जो गलती हुई उसे क्षमा करना उत्तम क्षमा है |
* क्षमा माँगने के लिए दिन या अवसर का इंतजार करने की भी जरुरत नहीं है, जैसे ही गलती कपट चले वैसे ही क्षमा कर देना
तथा मांग लेना |
revision of 7th chapter : इस अध्याय में जीव जिनवाणी को पढ़कर भी कैसे नई भूलें ग्रहण कर लेता है तथा किस प्रकार से वो भूले दूर की जा सकती है उसके बारे में बताया है | इसमें निश्चयाभासी मिथ्यादृष्टि का प्रकरण चल रहा हिया | निश्चय तथा व्यवहार धर्म के दो मार्ग है वह निश्चय को पकड़ लेता हिया किन्तु उसके सिद्धांतो को भी पूरी तरह से नहीं लगता अत: भूल करता है यहाँ यह बताया है | निश्चयाभासी मिथ्यादृष्टि के द्वारा होने वाली भूले: १. "अपने को सिद्ध समान मानता है |" ग्रंथो में आत्मा को सिद्ध तो स्वभाव से बतया गया है किन्तु यह वर्तमान में ही अपने आप को सिद्ध समान मान लेता है | २. "वर्तमान पर्याय में केवलज्ञान का सद्भाव मानता है |" केवलज्ञान तो हमें शक्ति रूप से है किन्तु वह उसका सद्भाव मानता है तथ कहता है की वह ज्ञानावरण के कारण जानने में नहीं आता है| ३. " आत्मा को रागादी रहित मानता है |" ४. "रागादी का निमित्त कर्म को ही मानता है |" ५. "कर्म -नोंकर्म का सम्बम्ध होते हुए भी नहीं मानता है |"