Class Date: 11/03/2009
Chapter: 7
Page#: 205
Paragraph #: 3rd
Recorded version:
Summary:
निस्चयाभसि के बाह्य प्रव्रुत्ति के पिछे क्या मान्याता होति हे उस्कि बात चल रहि हे.
पांचवा पॉइंट हे की वोह शुभोपयोग रूप क्रिया को हेय जानता हे.
revision:
पिछलि क्लास मे हमने थोडे प्रश्न देखे थे शुभ और अशुभ के बारे मे, उसका review कर लेते हे.
१> शुभ भाव भले हे या बुरे - अच्छे हे या बुरे ?
शुभ भाव कर्म के बन्ध के कारण हे इस लिये वे बुरे हि हे और आश्रव के हि भेद हे,
पुण्य - पाप दोनो एक मात के हि दो पुत्र हे.
भले दुनिया एसा ना देखे लेकिन पुण्य के उदय को भला जानना तो मिथ्या श्रध्धान होगा.
२> शुभ भाव करने चाहिये कि नहि ( बुरे हे तो भि )?
यहा अपेक्शा से कथन करेंगे.
अशुभ भाव कि अपेक्शा शुभ भाव करने चाहिये और सुध्ध भाव कि अपेक्शा शुभ भाव नहि करने चाहिये.
दुसरि बातः सुध्धोपयोग से पहेले सुभ भाव सहज हि होते हे , करने हे एसा सोचना नहि पडता.
जिस जीव को शुद्धोपयोग का सच्चा लक्ष्य बन गया है, उसके लिए तो ऐसा ही है. लेकिन जिसका ऐसा नहीं हुआ हो और ऐसे भाव सहज रूप से न होते हो, तो बुद्धि-पूर्वक करने योग्य है, उसमे उपयोग लगाना योग्य है.
और एक बात: सिधा अशुभ भाव से सुध्ध भाव मे जाना नहि हो सकता।
अशुभ से शुद्ध में नहीं जाया जाता. शुभ रूप परिणामो से हो कर ही शुद्धोपयोग होता है. इसके लिए करण परिणामो (करण लब्धि) को जानना.
३> शुभोपयोग रुप शुभ क्रिया धर्म हे कि नहि हे?
निश्चय से धर्म नहि हे और व्यवहार से धर्म हे.
निश्चय से तो राग-द्वेश रहित समता भाव के परिणाम को धर्म कहेते हे.
शुभोपयोग कुछ राग से मिश्रित हे इस लिये निश्चय से वोह धर्म नहि हे.
दुसरि बातः मंदिर आये, पुजा कि तो धर्म हो गया एसा मानकर संतुष्ट नहि होना हे.
अंतरंग मे जांच करनि हे कि सुध्धोपयोग का लक्श बन्धा हे कि नहि.
page 205: 3rd para:
** यद्यपि शुभ अशुभ दोनो बन्ध के कारण हे फिर भि शुभ से कषाय मन्द होति हे और अशुभ से कषाय तिव्र होति हे तो शुभ को छोड अशुभ मे जानेरुप घाटे का सोदा क्यो करे?
** यहा शुभ और अशुभ को दो अपेक्शा से समान कहाः १> अशुध्धता कि अपेक्शा और २> बन्ध के कारण कि अपेक्शा.
** यह समान वालि बात तो उन जिवो के लिये कि हे जो शुध्ध को लक्श मे लाते हि नहि और सिर्फ शुभ को हि मोक्श का साधन जानते हे, और जो शुभ को सर्वथा उपादेय जानते हे.
** जब शुभ और अशुभ का परस्पर विचार करे तो शुभ से कम नुक्शान हे और अशुभ से ज्यादा नुक्शान हे इस लिये सुध्धोपयोग न हो तब अशुभ से हटकर शुभ मे प्रवर्तना हि योग्य हे.
** अगर हम सिर्फ शुभ-अशुभ को हेय जान लो और उसका विशेश न समजो तो हमारा हि नुक्शान होगा, मोक्श मार्ग का एकदम सच्चा श्रध्धान करना हे.
** प्रश्नः अशुभ तो हुये बिना रहेता नहि हे और शुभ प्रव्रुत्ति तो इच्छा कर के करनि पडती हे , इच्छा तो विकल्प रुप हे तो एसे विकल्प क्यो करे?
->
यहा पहली बात तो यह हे कि अशुभ प्रव्रुत्ति भि बिना इच्छा के नहि होति हे. इच्छा तो तब भि होति हि हे लेकिन वह इच्छा बहुत हि सहज हो गइ हे. अनादि के सन्सकार और मोह का control होने से हम को वोह इच्छा देखेने कि आदत नहि हे.
इस लिये जेसे शुभ को विकल्प रुप जाना उसि तरह अशुभ भि विकल्प रुप हि हे.
-> दुसरि बातः शुभ प्रव्रुत्ति मे उपयोग लगाने से और उसका अभ्यास करते रहने से अशुभ कि प्रव्रुत्ति कम होने लगेगि और अशुभ से हट्कर शुभ मे जान सहज होने लगेगा.
इस तरह शुभ कि इच्छा करना और कम पापरुप क्रिया करना लेकिन शुभ का त्याग कर सदा निःशंक पापरुप प्रवर्तना योग्य नहि.
-> तिसरी बातः किसि आदमी कि एसि इच्छा हो कि बिल्कुल धन नही खर्चना हे और वोह देखे कि बहुत धन खर्च हो रहा हे तो वोह अपनी इच्छा से कम धन खर्च हो एसा उपाय करेगा. विकल्प और इच्छा आदि कषाय से होते हे, ग्यानी तो बिलकुल भी कषाय करना नहि चाहता लेकिन जब ज्यादा कषायरुप अशुभ कार्य होते देखे तो अपनी इच्छा से अल्प कषाय के शुभ कार्य मे उध्यम करेगा।
शारांश मे एसा कह शकते हे की जिव को हमेशा शुध्धोपयोग का लक्ष्य रखकर, जब शुध्धोपयोग का कार्य बन रहा हो तब शुभोपयोग और अशुभपयोग इन दोनों को समान जान उन को गौण करते हुए अपने शुध्धोपयोग के परिणाम बनाए रखने का पुरुषार्थ करना चाहिए, और जब अशुभपयोग का कार्य बन रहा हो तब शुभोपयोग को कम कषाय रूप जानते हुए शुभोपयोग को अंगीकार कराने का प्रयत्न करना उचित होगा। जब शुभोपयोग रूप कार्य बन रहा हो तब भी उसको निश्चय से धर्म न मानते हुए और उसे कर्म बंध का कारण जान हेय मानना ही योग्य हे।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
भेजने के लिए धन्यवाद. इसका सारांश क्या निकला जायेगा?
Couple corrections:
दुसरि बातः सुध्धोपयोग से पहेले सुभ भाव सहज हि होते हे , करने हे एसा सोचना नहि पडता.
Explaination: जिस जीव को शुद्धोपयोग का सच्चा लक्ष्य बन गया है, उसके लिए तो ऐसा ही है. लेकिन जिसका ऐसा नहीं हुआ हो और ऐसे भाव सहज रूप से न होते हो, तो बुद्धि-पूर्वक करने योग्य है, उसमे उपयोग लगाना योग्य है.
सिधा अशुभ भाव से सुध्ध भाव मे जाना राजमार्ग नहि हे. excepetion हो शकते हे लेकिन generalize नही कर शकते
Correction: अशुभ से शुद्ध में नहीं जाया जाता. शुभ रूप परिणामो से हो कर ही शुद्धोपयोग होता है. इसके लिए करण परिणामो (करण लब्धि) को जानना.
** यद्यपि शुभ अशुभ दोनो बन्ध के कारण हे फिर भि शुभ से कषाय मन्द होति हे और अशुभ से कषाय तिव्र होति हे तो अशुभ को छोड शुभ मे जानेरुप घाटे का सोदा क्यो करे?
Question: Do you want to say - शुभ को छोड़कर अशुभ में जानेरूप घाटे का सौदा क्यों करे? Or meant something else?
Post a Comment