नित्य निगोद और इतर निगोद ( मोक्ष मार्ग प्रकाशक ) प्रष्ट ३१
जीव जहाँ हमेशा से रह रहा है और पहली बार जीव नित्य निगोद से निकल कर आता है इत्तर निगोद जब जीव नित्य से निकल कर दूसरी पर्याय से वापस निगोद में जाता है तो वह इत्तर निगोद कहलाता है
हर जीव नित्य निगोद से ही निकल कर आता है चार गति मैं से तिर्यंच मैं निगोद आता है इस मैं से भी एक इंद्रिय का धारक निगोदिया जीव है उस मैं भी वनस्पति कायक होता है वनस्पति मैं भी दो प्रकार है - साधारण और प्रत्येक साधारण वनस्पति मैं एक शरीर और अनेक स्वामी वह नित्य निगोद कहलाता है प्रत्येक वनस्पति दो प्रकार के है - प्रतिष्टित और अप्रतिष्टित एक इन्द्रिय जीव है जो नित्य निगोद मैं ही भ्रमण करते हैं , वे नित्य निगोद जीव सदकाल वहीं रहते है ६०८ जीव ६ महीने ८ समय मैं वहां से निकलते हैं इतने ही जीव वहाँ जाते भी हैं जो एक इन्द्रिय जीव नित्य निगोद से निकलते हैं वे एक इन्द्रिय , विकलत्र्य मैं जाते हैं ये सीधे नरक और देव मैं नहीं जाते हैं वह मनुष्य और तिर्यंच मैं जाता है इत्तर निगोद को चतुर्गति निगोद भी कहते हैं
जीव इत्तर निगोद से निकल कर फ़िर अन्य पर्याय मैं भ्रमण करते हैं असंख्यात कल्प काल तक भ्रमण कर सकता है एक कल्प २० कोडा कोडी सागर का होता है एक इन्द्रिय से त्रस पर्याय का काल करीब दो हज़ार सागर है इत्तर निगोद मैं ढाई पुदगल परावर्तन तक रहता है - जो की अनंत काल है स्थावर मैं फ़िर कल्प काल तक
ऐसा परिवर्तन चलता रहता है कभी दो इन्द्रिय मैं चला जावे तो असंख्यात पुदगल परावर्तन है निगोद से त्रस पर्याय मैं जाना काक तालिक नयाय वर्त जैसा है - दुर्लभ है एक कव्वा भूखा हो और कोई ताली बजाए, फिर कोई वृक्ष से फल उसके मुंह मैं आ जावे वो काक तालिक न्याय वर्त है अधिकाँश समय एक इन्द्रिय जीव मैं जाता है इस प्रकार कर्म बंधन का रोग जीव को अनादी काल से चल रहा है
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