प्रथमानुयोग का प्रयोजन:
१. प्रथमानुयोग में सन्सार की विचित्रता, पुण्य पाप का फ़ल ऐवं मह्न्त पुरुषों की प्रवृति बताकर तुच्छ बुद्धि जीवो को धर्म के सन्मुख करते है ।
२. लौकिक प्रवृत्तिरुप निरुपण होने से तत्व समझ मे आ जाता है ।
३. प्रथमानुयोग का पढ्ना तत्व ज्ञानी जीवो को उदाहरण रुप भसित होता है।४. सुभटो के लिये उत्साह जागृत होता है।
करणानुयोग का प्रयोजन
१. जीवों के व कर्मों के विशेष तथा त्रिलोकादिककी रचना निरुपित करके जीवो को धर्म में लगाया है।
२. त्रिलोकादिककी रचना को जानने से जीव को पता चलाता है कि लोक का नाश नहीं होगा ,जीव क नाश नहीं होगा, इससे उसका भय निकल जाता है।
३. इस अनुयोग मे विस्तार से चर्चा होने पर पता चलता है कि धर्म सभी जगह है ।
४. जीव सभी जगह घुम चुका है तथा अनंत काल से घुम रहा है।
५. मान कषाय कम होती है।
६. इस जीव को कहाँ जाना उसका निर्णय कर सकता है।
७. ज्ञान प्रगट नहीं है तो उसे प्रगट करने क पुरुषर्थ करना चाहिये।
८. दुनिया मे सारे पर्वत पहाड,नदियाँ देख चुका है । और क्या देखना चाहता है ? जो देखना है वह ज्ञान मे अपने आप भासित होना चहिए ऎसा कार्य करना
चाहिये ।
वीरेन्द्र जैन
Thursday, July 24, 2008
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