Class Date: 12/1/09
Chapter: 7
Page#: 213
Paragraph #:3
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Summary:
निश्चयाभासी में जो भी मिथ्या मान्यताये है उनका निराकरण प्रवचनसार की एक गाथा द्वारा किया जा सकता है:
"सुविदितपयत्थसुत्तो संजमतव संजुदो विगादरागो
समणो सम्सुहदुक्खो भणिदो सुद्धोवओगोत्ति "
अर्थात -
जिन्होंने पदार्थों को और सूत्रों को भली भांति जा लिया है , जो संयम और तपयुक्त है, जो वीतराग अर्थात राग द्वेष से रहित है और जिन्हें सुख दुःख सामान है, ऐसे श्रमण को शुद्धोपयोगी कहा गया है
व्यवहाराभासी मिथ्यादृष्टि :
इसमें व्यव्हाराभासी मिथ्यात्व में गृहीत मान्यताओं के साथ अग्रुहित मिथ्यात्व मान्यताओं का भी वर्णन मिलेगा
यहाँ जिन्होंने व्यवहार को तो धारण किया है परन्तु वासव मैं व्यवहार को धारण नहीं किया है उसका वर्णन किया है, इसमें भूल के सम्बन्ध में जो भूल करते हैं वो बताया है यहाँ पर किसी क्रिया का निषेध करना उद्देश्य नहीं है अपितु शुद्धोपयोग का स्थापन करना उद्देश्य है
* निश्चय व्रत : शुद्धोपयोग में परिणमन
* व्यवहार व्रत : शुभोपयोग में परिणमन
* व्यवहार धर्म : शुभोपयोग के समय व्रत रूप मन, वचन, काय की प्रवृत्ति
* जहाँ साधन - भक्ति, व्रत, ताप और साध्य - मोक्ष में अंतर है (भिन्न साधानसाध्य भाव ) उसका मुख्यता से उपदेश है, उन्ही साधन को अंगीकार करके आचरण करके उसे ही सर्वधर्म के अंग मान लेने से सम्यग्दर्शन नहीं होता बल्कि मिथ्यव्भव ही पुष्ट होता है
*यहाँ जो पूजा तथा पुजादी में जो भगवान के लिए राग होता उत्पन्न होता है उसका निषेध नहीं किया है बल्कि पुजादी करने से ही मुझे मोक्ष मिल जायेगा इस मान्यता का निषेध किया है
* यहाँ यह जानकर की इनसे मोक्ष नहीं होता जानकर पाप में प्रवृत्ति मत करने लग जाना अर्थात यहाँ इसका पाप प्रवृत्ति की अपेक्षा निषेध नहीं है बल्कि यहाँ जो जीव व्यव्हारादी प्रवृत्ति में ही संतुष्ट हो जाते है उन जीवो को मोक्षमार्ग में लगाने के लिए निरूपण किया है
* अब जो कथन करते है उसे सुनकर शुभप्रव्रत्ति को छोड़ अशुभ प्रवृत्ति में प्रवर्तन करोगे तो तुम्हारा ही बुरा होगा और यदि यथार्थ श्रद्धान कर मोक्षमार्ग में लगोगे तो तुम्हारा भला होगा
सार : यहाँ पर व्यवहराभासी की मिथ्या मान्यता की सिर्फ व्यव्हार की क्रियाओं मात्र से मोक्ष मिल जायेगा, वही धर्म है उसे सही कराकर उसे शुद्धोपयोग में स्थापित करना ही उद्देश्य है
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1 comment:
Thanks for sending.
Couple comments:
संजुदो विगादरागो
संजुदो विगदरागो
सम्सुहदुक्खो
समसुहदुक्खो
यहाँ पर व्यवहराभासी की मिथ्या मान्यता की सिर्फ व्यव्हार की क्रियाओं मात्र से मोक्ष मिल जायेगा, वही धर्म है उसे सही कराकर ..
Comment: क्रियाओ से मोक्ष नहीं है - मात्र इतना ही नहीं बताना है, बल्कि क्रिया भाव पूर्वक भी की जावे, तब भी क्रिया से तो मोक्ष / सुख की प्राप्ति नहीं है. शुद्धोपयोग से ही उसकी सिद्धी है.
व्यवहार धर्म : शुभोपयोग के समय व्रत रूप मन, वचन, काय की प्रवृत्ति
यह भी व्यवहार से व्रत ही कहा जाता है, लेकिन यह व्यवहार का भी व्यवहार है.
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